बुध n. एक ग्रह, जो बृहस्पति की पत्नी तारा का चन्द्रमा से उत्पन्न पुत्र था
[पद्म. सृ.८२] । यह बृहस्पति पत्नी का पुत्र था, इस कारण इसे ‘बृहस्पतिपुत्र’ नामांतर प्राप्त है । क्यों कि, यह चन्द्रमा से उत्पन्न हुआ, इसलिये इसे चन्द्र (सोम) वंश का उत्पादक कहा जाता है
[पद्म.उ.२१५] । इसकी पत्नी का नाम इला था, जो मनु की कन्या थी । इला से इसे पुरुरवस नामक पुत्र उत्पन्न हुआ
[म.अनु.१४७-२६-२७] । यही पुरुरवस् सोमवंश का आदि पुरुष माना जाता है
[पद्म. सृ. ८, १२] ;
[दे. भा.१.१३] । ‘भविष्य’ में इसे चन्द्र एवं रोहिणी का पुत्र कहा गया है ।
बुध n. बृहस्पति की दो पत्नियॉं थीं, जिनमें से दूसरी का नाम तारा था । सोम ने तारा का हरण किया था । एवं उससे ही उसे बुध नामक पुत्र हुआ
[ऋ.१०.१०९] । पुराणों में भी यह कथा अनेक बार आयी है
[वायु.९०.२८-४३] ;
[ब्रह्म.९.१९-३२] ;
[मत्स्य.२३] ;
[पद्म. सृ.१२.३३-५८] । उक्त ग्रन्थों में निर्दिष्ट बुध के जम की कथा रुपकात्मक प्रतीत होती है, एवं आकाश में स्थित गुरु (बृहस्पति), चन्द्र, बुध आदि ग्रहनक्षत्रों को व्यक्ति मान कर इस कथा की रचना की गयी है । विष्णुधर्म में इसके जन्म की कथा कुछ दूसरी भॉंति दी गयी है । कश्यप ऋषि की धनु नामक स्त्री थी, जिससे उसे रज नामक उत्पन्न हुआ पुत्र था । रज का विवाह वरुण की कन्या वारुनी से हुआ । एक बार समुद्र में स्नान करते समय, वारुणी उसी में डूब गयी । उसे डूबा हुआ देख कर, उसे ढूँढने के लिये चन्द्रमा ने जल में प्रवेश किया । उसके प्रवेश करते ही समुद्र में हिलोर्रें उठने लगी, और उससे एक बालक बाहर निकला । वही बालक बुध था । बृहस्पतिपत्नी तारा ने इस बालक बुध के संरक्षण का भार लिया, किन्तु बाद को असुविधा के कारण इसे चन्द्रपत्नी दाक्षायणी को दे दिया
[विष्णुधर्म.१.१०६] । बृहस्पति ने इसका जातिकर्मादि संस्कार किये थे । यह परम विद्वान हो कर ‘हस्तिशास्त्र’ में विशेष पारंगत था
[पद्म. सृ.१२] । भास्कर संहिता के अन्तर्गत ‘सर्वसारतंत्र’ का यह रचयिता माना जाता है
[ब्रह्मवै. १६] ।
बुध n. एक बार इसने व्रत किया, एवं उसकी समाप्ति होने पर यह कश्यप ऋषि की पत्नी अदिति के पास भिक्षा के लिए गया और भिक्षा की याचना की । भिक्षा न मिलने पर इसने अदिति को शाप दिया, जिस कारण उसे एक मृत-अण्ड पैदा हुआ । उस अण्ड से कालोपरान्त श्राद्धदेव की उत्पत्ति हुयी । मृत अण्ड से पैदा होने के कारण, उसे ‘मार्तड’ नामांतर प्राप्त हुआ
[म.शां.३२९.४४] । भागवत में इसका विवरण एक ग्रह के रुप में दिया गया है । बुध ग्रह सौरमण्डल में शुक्रग्रह से दो लाख योजन की दूरी पर स्थित माना जाता है । यह शुभग्रह अवश्य है; किन्तु जब सूर्य का उल्लंघन कर जाता है, तब अनावृष्टि द्वारा संसार को त्रस्त करता है
[भा.५.२२] ।
बुध (आत्रेय) n. एक वैदिक सूक्तद्रष्टा
[ऋ. ५.१] ।
बुध (सौम्य) n. एक वैदिक सूक्तद्रष्टा
[ऋ.५.१.] ।
बुध (सौमायन) n. पंचविंश ब्राह्मण में निर्दिष्ट एक आचार्य, जिसके द्वारा यज्ञदीक्षा ली गयी थी
[पं.ब्रा.२४.१८.६] । सोम का वंशज होने से, इसे ‘सौमायन’ पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा ।
बुध II. n. एक वानप्रस्थी ऋषि, जिसने वानप्रस्थ धर्म का पालन एवं प्रसार कर स्वर्गलोक प्राप्त किया था
[म.शां.२३९.१७] ।
बुध III. n. (सू. दिष्ट.) एक राजा, जो विष्णु एवं वायु के अनुसार वेगवत् राजा का पुत्र था । इसे ‘बंधु’ नामांतर भी प्राप्त है ।
बुध IV. n. एक स्मृतिकार एवं धर्मशास्त्रज्ञ, जिसका निर्देश अपरार्क, कल्पतरु, जीमूतवाहनकृत ‘कालविवेक’ आदि ग्रन्थों में प्राप्त है । इसके द्वार रचि धर्मशास्त्र का ग्रन्थ काफी छोटा है, जिसमें निम्नलिखित विषयों का विवेचन करते हुए, इसने उन पर अपने विचार प्रकट किये हैः---गर्भाधान से लेकर उपनयन तक के समस्त संस्कार, विवाह, तथा उसके प्रकार, पंच-महायज्ञ, श्राद्ध, पाकयज्ञ, हविर्यज्ञ, सोमयाग, एवं ब्राह्मण, क्षत्रिय एवं संन्यासियों के कर्तव्य आदि । बुध के द्वारा रचित उक्त ग्रन्थ प्राचीन नहीं प्रतीत होता । उसके अनुशीलन से यह पता चलता है कि, इसने पूर्ववर्ती धर्मशास्त्रवेत्ताओं द्वारा कथित सामग्री को संग्रहित मात्र किया है । इस ग्रन्थ के सिवाय ‘कल्पयुक्ति’ नामक इसका एक अन्य ग्रन्थ भी प्राप्त है (C.C)
बुध IX. n. ०. द्रविण देश में रहनेवाला एक ब्राह्मण । इसकी पत्नी अत्यंत दुराचारिणी थी, किंतु दीपदान के पुण्यकर्म के कारण, उसके समस्त पाप नष्ट हो गयें
[स्कंद. २४.७] ।
बुध V. n. मगध देश का एक राजा, जो हेमसदन राजा का पुत्र था । इसकी माता का नाम अंजनी था
[स्कंद.१.२.४०] ।
बुध VI. n. एक राक्षस, जो पुलह एवं श्वेता के पुत्रों में से एक था ।
बुध VII. n. सुतप देवों में से एक ।
बुध VIII. n. गौड देश में रहनेवाला एक ब्राह्मण, जो दुर्व एवं शाकिनी का पुत्र था । यह अत्यंत दुराचारी, दुर्व्यसनी एवं पाशविक वृत्तियों का था । एक बार शराब पी कर वेश्यागमन के हेतु यह एक वेश्या के यहॉं आ कर रातभर वहीं पडा रहा । इसके घर वापस न लौटने पर, इसका पिता ढूंढता हुआ इसके पास पहुँचा, एवं इसकी निर्भत्सना की । उसके इस प्रकार कहने पर, इसने तत्काल अपने पिता को लात से मार कर उसका वध किया । बाद को जब यह घर आया, तब इसको माता ने अपनी बुरी आदतों को छोडने के लिये इसे समझाया । इसने उस बेचारी का भी वध किया । कालांतर में इस हत्यारे ने अपनी पत्नी को भी न छोडा, तथा उसे भी मार कर खतम कर दिया । एक दिन इसने कालभी ऋषि की सूलभा, नामक पत्नी को देखा, तथा तुरंत ही उसका हरण कर उसके साथ बलात्कार किया । इससे क्रुद्ध हो कर ऋषिपत्नी ने शाप दिया, ‘तुम कोढी हो जाओं’। फिर यह कोढी हो कर इधर उधर घूमने लगा । घूमते घूमतें यह शूरसेन राजा के नगर आ पहुँचा, जहॉं वह अपनी संपूर्ण नगरी के साथ विमान में बैठकर स्वर्ग जाने की तैयारी में था । विमान चालके ने लाख प्रयत्न किया, लेकिन वह उड न सका । तब देवदूतों ने कोढी बुध को दूर भगा देने के लिये शूरसेन से प्रार्थना की, क्यों कि, इस हत्यारे की पापछाया के ही कारण विमान पृथ्वी से खिसक न सका । शूरसेन दयालु प्रकृति का धर्मज्ञ शासक था । अतएव उसने बुध को देखा, एवं गजानन नामक चतुरक्षरी मंत्र से इसके कोढ को समाप्त कर, इसे भी स्वानंदापुर ले जाने की व्यवस्था की
[गणेश.१.७६] ।
बुध X. n. १. एक अग्निहोत्र करनेवाला ब्राह्मण, जो मधुबन में रहनेवाले शाकुनि नामक ऋषि का पुत्र था
[पद्म. स्व.३१] ।