शिशुमार n. एक ऋषि, जो पानी में ग्राह का रूप धारण कर रहा था
[पं. ब्रा. १४.५.१५] । ‘शिशुमार’ का शब्दशः अर्थ ‘ग्राह’ ही है । इसे ‘सिशुमार’ नामांतर भी प्राप्त था । इसका सही नाम शर्कर था । एक बार सृष्टि के समस्त ऋषियों ने इंद्र की स्तुति की, किंतु यह मौन ही रहा। इंद्र के द्वारा स्तुति करने की आज्ञा होने पर, इसने औद्धत्य से कहा, ‘तुम्हारी स्तुति करने के लिए मेरे पास समय नहीं है । फिर भी एक बार पानी उछालने के कार्य में जितना समय व्यतीत होगा, उतने ही समय तुम्हारी स्तुति करूँगा’। किंतु इंद्र की स्तुति प्रारंभ करने पर इसे पता चला कि, इंद्र की जितनी स्तुति की जये, उतनी ही कम है । फिर इसने तपश्र्चर्या कर सामविद्या प्राप्त की, जो आगे चल कर इसीके नाम के कारण ‘शार्कर-साम’ नाम से सुविख्यात हुआ
[पं. ब्रा. १४.५.१५] ।
शिशुमार II. n. स्वायंभुव मन्वंतर का एक प्रजापति, जिसकी भ्रमी नामक कन्या का विवाह ध्रुव से हुआ था
[भा. ४.१०.११] ।
शिशुमार III. n. भगवान् विष्णु का एक अवतार, जो दोष वसु एवं शर्वरी का पुत्र था
[भा. ६.६.१४] ।