हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|पुस्तक|रामचरितमानस|अयोध्या काण्ड| श्लोक अयोध्या काण्ड श्लोक दोहा १ से १० दोहा ११ से २० दोहा २१ से ३० दोहा ३१ से ४० दोहा ४१ से ५० दोहा ५१ से ६० दोहा ६१ से ७० दोहा ७१ से ८० दोहा ८१ से ९० दोहा ९१ से १०० दोहा १०१ से ११० दोहा १११ से १२० दोहा १२१ से १३० दोहा १३१ से १४० दोहा १४१ से १५० दोहा १५१ से १६० दोहा १६१ से १७० दोहा १७१ से १८० दोहा १८१ से १९० दोहा १९१ से २०० दोहा २०१ से २१० दोहा २११ से २२० दोहा २२१ से २३० दोहा २३१ से २४० दोहा २४१ से २५० दोहा २५१ से २६० दोहा २६१ से २७० दोहा २७१ से २८० दोहा २८१ से २९० दोहा २९१ से ३०० दोहा ३०१ से ३१० दोहा ३११ से ३२६ अयोध्या काण्ड - श्लोक गोस्वामी तुलसीदासने रामचरितमानस ग्रन्थकी रचना दो वर्ष , सात महीने , छ्ब्बीस दिनमें पूरी की। संवत् १६३३ के मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष में रामविवाहके दिन सातों काण्ड पूर्ण हो गये। Tags : ramcharitmanastulsidasतुलसीदासपुस्तकरामचरितमानस श्लोक Translation - भाषांतर श्लोक यस्याङ्के च विभाति भूधरसुता देवापगा मस्तके भाले बालविधुर्गले च गरलं यस्योरसि व्यालराट् । सोऽयं भूतिविभूषणः सुरवरः सर्वाधिपः सर्वदा शर्वः सर्वगतः शिवः शशिनिभः श्रीशङ्करः पातु माम् ॥१॥ प्रसन्नतां या न गताभिषेकतस्तथा न मम्ले वनवासदुःखतः । मुखाम्बुजश्री रघुनन्दनस्य मे सदास्तु सा मञ्जुलमंगलप्रदा ॥२॥ नीलाम्बुजश्यामलकोमलाङ्गं सीतासमारोपितवामभागम्। पाणौ महासायकचारुचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम् ॥३॥ दोहा श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि। बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥ चौपाला जब तें रामु ब्याहि घर आए । नित नव मंगल मोद बधाए ॥ भुवन चारिदस भूधर भारी । सुकृत मेघ बरषहि सुख बारी ॥ रिधि सिधि संपति नदीं सुहाई । उमगि अवध अंबुधि कहुँ आई ॥ मनिगन पुर नर नारि सुजाती । सुचि अमोल सुंदर सब भाँती ॥ कहि न जाइ कछु नगर बिभूती । जनु एतनिअ बिरंचि करतूती ॥ सब बिधि सब पुर लोग सुखारी । रामचंद मुख चंदु निहारी ॥ मुदित मातु सब सखीं सहेली । फलित बिलोकि मनोरथ बेली ॥ राम रूपु गुनसीलु सुभाऊ । प्रमुदित होइ देखि सुनि राऊ ॥ N/A References : N/A Last Updated : February 25, 2011 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP