यह अत्यन्त आनन्द का विषय है कि वर्तमान युग में हम लोगों का ध्यान अपनी प्राचीन संस्कृति के स्वरुप के अनुसन्धान में क्रमशः सचेत एवं आकृष्ट होता जा रहा है । वेद तथा लुप्तप्राय वैदिक साहित्य के पुनरुद्धार के लिए प्रतीच्य एवं भारतीय विद्वामों ने जो सुदीर्घ कालव्यापी अक्लान्त परिश्रम किया , उससे हम सब लोग परिचित हैं । तत्कालीन भारतीय शासन की ओर से पुरातत्त्व विभाग की जब से स्थापना हुई , तब से यहाँ के प्राचीन इतिहास के विभिन्न क्षेत्रों में -विशेषतः स्थापत्य , भास्कर्य ,मुद्रा , शिलालेख प्रभृति विषयों में -बहुत से भूले हुए तथ्यों का उद्घाटन हुआ है । यह एक विचित्र संयोग है कि आधुनिक युग में विस्मृतप्राय वैदिक वाङ्मय के पुनरुद्धार की दिशा में जिस प्रकार मोक्षमूलर प्रभृति प्रतीच्य मनीषियों का प्राथमिक उद्यम रहा है , ठीक उसी प्रकार विस्मृतप्राय तान्त्रिक वाङ्मय की ओर सब से पहले दृष्टि आकृष्ट करने का श्रेय भी प्रतीच्य मनीविषयों को ही प्राप्त है । इस विषय में सर जान उडरफ उपनाम आर्थर एवलेन को हम लोगों को नहीं भूलना चाहिए । यद्यापि विभिन्न स्थानों से आंशिक एवं विकीर्ण रुप में तान्त्रिक ग्रन्थों का प्रकाशन -कार्य हो रहा है , किन्तु मात्र वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय से ही इस कार्य में अधिक उत्साह दिखाया जा रहा है ।
भारतीय आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रायः सभी प्रकार के साधनों का एक विशिष्ट स्थान काशी रहा है । बुद्धदेव के समय से ही , बल्कि उनके भी पहले से विद्या के केन्द्र रुप में काशी की प्रसिद्धि थी । विदेशी से आये पर्यटकों के विवरण से भी यह बात सिद्ध होती है । ऐतिहासिक गवेषणा के प्रभाव से प्रभाव से इस विषय में विशेष ज्ञान की प्राप्ति हो सकेगी । मध्ययुग से वर्तमान समय तक दृष्टि देने प्रतीत होगा कि इस समय में भी बहुसंख्यक विशिष्ट तान्त्रिक साधक और ग्रन्थकार काशी में आविर्भूत हुए थे ।
उदाहरणस्वरुप कई साधकों के नाम नीचे दिये जा रहे हैं ---
( १ ) सरस्वती तीर्थ --- ये परमहंस परिव्राजकाचार्य थे और दक्षिण से आये हुए प्रकाण्ड विद्वान् थे । ये वेदान्त , मीमांसा , सांख्य , साहित्य तथा व्याकरण के छात्रों को पढाया करते थे । इनका मुख्य ग्रन्थ शङ्कराचार्य कृत प्रपञ्चसारतन्त्र की टीका थी ।
( २ ) राघवभट्ट --- इनके पिता नासिक से काशी आकर बस गये । राघवभट्ट जन्म से ही काशी में थे । इन्होंने शारदातिलक की टीका पदार्थादर्श लिखी थी जो सर्वत्र प्रसिद्ध है । इस टीका की रचना काशी में हुई थी । रचनाकाल १४९४ ई० है ।
( ३ ) सर्वानन्द परमहंस --- पूर्वबङके बहुत उच्चकोटि के सिद्ध पुरुष थे । इन्होंने दसों महाविद्याओं का एक साथ साक्षात्कार किया था । यह भी प्रायः चार सौ वर्ष पहले की बात है । इनका अन्तिम समय काशी में ही बीता । किसी - किसी के मत से ये राजगुरु मठ में रहते थे । इनकी अलौकिक शक्तियाँ बहुत थीं । सर्वोल्लासतन्त्र इनका संकलित तन्त्रग्रन्थ है ।
( ४ ) विद्यानन्दनाथ --- ये दक्षिण भारत के निवासी थे । काञ्ची से भी दक्षिण में इनका घर था । ये सर्वशास्त्र के पण्डित थे , किन्तु तन्त्रशास्त्र में विशेष अनुराग था । ये तीर्थयात्रा के प्रसंग से जलन्धर नामक सिद्धपीठ में गये थे । वहाँ सुन्दराचार्य या सच्चिदानन्दनाथ नामक एक सिद्ध पुरुष से मिले थे , उनसे दीक्षा लेकर स्वयं ‘ विद्यानन्दनाथ दीक्षित ’ यह नाम धारण किया और गुरु के आदेश से काशी में आकर रहने लगे । काशी रहते हुए इन्होंने तन्त्रशास्त्र के अनेक विशिष्ट ग्रन्थो का प्रणयन किया । ये भी प्रायः चार सौ वर्ष पहले के आचार्य होंगे ।
( ५ ) महीधर --- ये अहिच्छत्र उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद मण्डल के रामनगर से आये थे और काशी में आन्तिम समय तक रहे । इनका प्रसिद्ध ग्रन्थ नौका टीका सहित मन्त्रमहोदधि है । रचनाकाल १६४५ वि ) सं० ( १५८८ ईशवीय ) है ।
( ६ ) नीलकण्ठ चतुर्द्धर --- ये प्रतिष्ठान ( पैठान ) के थे , किन्तु आजीवन काशी में रहे । महाभारत के टीकाकार रुप से इनकी विशेष प्रसिद्धि है । इन्होंने तन्त्रशास्त्र में शिवताण्डव की टीका लिखी जिस टीका का नाम ‘ अनूपाराम ’ है । रचनाकाल १६८० ईशवीय माना जाता है ।
( ७ ) प्रेमनिधि पन्त --- ये कूर्माचल से काशी आये हुए थे । ये जीवनान्त तक काशी में ही रहे । इन्होंने बहुत से तान्त्रिक ग्रन्थों का निर्माण किया जिनमें शिवताण्डव की टीका मल्लादर्श का नाम लिया जा सकता है । शारदातिलक तथा तन्त्रराज पर भी इन्होंने टीका लिखी थी । ये करीब २५० वर्ष पहले रहा करते थे ।
( ८ ) भास्कर राय --- ये दक्षिण देश के निवासी थे , किन्तु दीर्घकाल तक काशी में ही रहे । सिद्धपुरुष के रुप में इनकी ख्याति थी । इन्होंने ललितासहस्त्रनाम की टीका , योगिनीह्रदय पर सेतुबन्ध टीका , वरिवस्यारहस्य आदि अनेक ग्रन्थ लिखे थे । १९२९ ईशवीय के आसपास इनका जानना चाहिए ।
( ९ ) शंकरानन्दनाथ --- इनका पूर्व नाम प० शंभु भट्ट था । ये अद्वितीय मीमांसक प० खण्डदेव के शिष्य थे और मीमांसा में ग्रन्थ लिखे । ये श्री विद्या के अनन्य उपासक थे । इनका सुन्दरीमहोदय नामक ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं । १७०७ ई० इनका समय माना जाता है ।
( १० ) माधवानन्दनाथ --- ये सौभाग्यकल्पद्रुम के रचियता हैं । यह ग्रन्थ परमानन्द - तन्त्र के आधार पर लिखा गया है । ये भी काशी में ही रहे । इनका समय आज से १५० वर्ष पूर्व माना जाता हैं ।
( ११ ) क्षेमानन्द --- माधवानन्द के शिष्य क्षेमानन्द प्रसिद्ध तान्त्रिक विद्वान् थे । इन्होंने सौभाग्यकल्पलतिका का निर्माण किया था ।
( १२ ) सुभगानन्दनाथ --- एक प्रसिद्ध तान्त्रिक आचार्य काशी में रहते थे । ये केरल देश के थे , इनका पूर्वनाम श्रीकण्ठ था । ये काशी में तन्त्र तथा वेद दोनों के अध्यापक थे । ये माधवानन्दजी के ही समसामायिक माने जाते हैं ।
( १३ ) काशीनाथ भट्ट --- इनका भी नाम उल्लेख योग्य है । इन्होंने छोटे - छोटे अनेक तान्त्रिक ग्रन्थ लिखे थी । ये अधिक प्राचीन नहीं , अपितु १०० वर्ष पहले के हैं ।