हरिद्रागणनाथ का , वरदेश्वरमाली का , ऊर्ध्वकेश का , धूम्र का तथा जटिल का साधन , आनन्दभैरव का , बाणनाथ का साधन , करीन्द्र का , शुभाङ्ग का , हिल्लोलमर्दक का , पुष्पनाथेश्वर का , वृषनाथ ( के मन्त्र ) का , अष्टमूर्त्ति , कालमूर्त्ति का तथा चन्द्रशेखर का साधन ( यहाँ कहा गया है उसे सुनिए ) ॥६१ - ६३॥
विमर्श --- कपिलेश रुद्र का तथा पिङ्गाक्षक का , दिगम्बर का , सूक्ष्म का , उपेन्द्रपूजित का , अवधूतेश्वर का , अष्टवसु का साधन यहाँ कहा गया है उसे सुनिए ॥६१ - ६३॥
इसी प्रकार क्रमुक , घोर एवं कुबेर से आराधित ( मृत्युञ्जय ) मन्त्र का , त्रिपुरान्तक मन्त्र का , कमलाक्ष मन्त्र इत्यादि सिद्धिमन्त्रों के विविध मन्त्रार्थ प्रसन्नतापूर्वक इस रुद्रयामल तन्त्र में विशेष रूप से विस्तारपूर्वक कहे गये हैं , उन्हें सुनिए ॥६४ - ६५॥
हे महादेव ! जिन मन्त्रों से इस पृथ्वी पर ही इन्द्रादि सभी देवतागण सिद्ध हो जाते हैं , उन प्रकारों को सावधान मन से आनन्दपूर्वक श्रवण कीजिए ॥६६॥
इतना ही नहीं , उपविद्यासाधन , विविध मन्त्र , अनेक प्रकार के कर्म और धर्म , षट्कर्मों का साधन , श्रीरामसाधन , यक्षसाधन , योगसाधन और सर्वविद्यासाधन , राजज्वालादि साधन , मन्त्रसिद्धि के प्रकार , हनुमत्साधनादि , विषज्वाला साधन , पाताललोक साधन , भूतलिपि के प्रकार तथा उसके साधन , नवकन्या साधन एवं अष्टसिद्धि के प्रकार आदि भी कहे गए हैं ॥६७ - ७०॥
आसन एवं बहुत से ( योग के ) अङ्गो के साधन , कात्यायनी साधन , चेटी साधन , कृष्णमार्जार सिद्धि , खड्गसिद्धि इसके बाद पादुकाजङ्वसिद्धि , निजजिहवादि साधन , संस्कारगुटिकासिद्धि , खेचरी सिद्धि , भूप्रवेशप्रकारत्व साधन , नित्यतुङादि साधन , स्तम्भन , दारण , मुजियों को भी आकर्षण करने के उपाय , अनेका प्रकार की विद्यमान औषधियाँ हरितालादि की सिद्धि , रस साधन , पारद साधन , अनेक प्रकार के रसों से समुद्भूत रसभस्मादि साधन आदि वर्णित हैं ॥७१ - ७५॥
वृद्ध को तरुण बनाने का अत्यदभुत साधन , वैजयन्ती साधन , वासक के चरित्र , शिवा चरित्र , अश्व तथा वायस के चरित्र , कुमारियों के भेद , वज्रवारण के उपाय , सम्पत्ति साधन , देशसाधन , काम साधन , गुरुपूजा का विधान , गुरुओं को संतुष्ट करने के उपाय , अपने इष्टदेव का साधन , आत्मसाधन , १ . वारुणी , २ . पैष्टिकी , ३ . गौडी तथा ४ . केतकी इन चारों प्रकारों के मद्यों का साधन , सदेहस्वर्गगमन का साधन , जो मनुष्यों , किं बहुना देवताओं के लिये भी दुर्लभ हैं ( यहाँ कहे गए हैं ) ॥७६ - ८०॥