तृतीय पटल - पद्माकार अष्टदल महाचक्र

रूद्रयामल तन्त्रशास्त्र मे आद्य ग्रथ माना जाता है । कुण्डलिणी की सात्त्विक और धार्मिक उपासनाविधि रूद्रयामलतन्त्र नामक ग्रंथमे वर्णित है , जो साधक को दिव्य ज्ञान प्रदान करती है ।


पहले ८ दलों वाला पद‍माकार महाचक्र का निर्माण करें । पूर्वपत्र पर ’ अ आ ’ वर्ण लिखे , द्वितीय पत्र पर द्वितीय ’ इ ई ’ लिखे , तृतीय पत्र पर कर्णयुग्म ’ उ ऊ ’, चतुर्थ पत्र पर नासिकाद्वय ’ ऋ ऋ ’, पञ्चम पर नयन ’ लृ लृ ’, षष्ठ पर ओष्ठाधर ’ ए ऐ ’, सप्तम पर दन्तयुग्म ’ ओ औ ’ तथा अष्टम पत्र पर षोडश ’ अं अः ’ स्वरों को लिखे । इसी प्रकार पूर्वदल पर क वर्ग , द्वितीय दल पर च वर्ग , तृतीय पर ट वर्ग , चतुर्थ पर त वर्ग , पञ्चम पर प वर्ग , षष्ठ पर य र ल व , सप्तम पत्र पर श ष स और अष्टम पर ह क्ष - इन व्यञ्जनों को भी लिखें ॥२४ - २८॥

पद्ममहाचक्र का फल --- सुख राज्य , धन विद्या , यौवन , आयुष्य , पुत्र और दीर्घजीवन ये ८ फल उस चक्र पर विचार करने से प्राप्त होते हैं । उसमें यदि साधक के अपने नाम का अक्षर और मन्त्र के नाम का अक्षर यदि दोनों एक स्थान में अथवा दूसरे स्थान में मिल जायँ तो ये दो स्थान तन्त्रशास्त्र के विद्वानों द्वारा विरोध वाले कहे गये है ॥२९ - ३०॥

इसलिए प्रथम ’ अ आ ’ वाले प्रथम पत्र में जीवन और मरण दोनों का विचार किया जाता है । मन्त्रि साधक इसे लिखकर गणना करे और सदैव मरण का वर्जन करे ॥३१॥

विमर्श --- इस प्रकार आठ दलों में आठ स्वरों और ३४ व्यञ्जनों को लिखकर साधक नाम के आद्य अक्षर से परीक्षा करे । मरण फल वाले मन्त्र का सर्वदा परित्याग करे । यह बात निश्चित है कि जहाँ मरण है वहाँ जीवन रह नहीं सकता । क्योंकि दोनों का परस्पर विरोध है , अतः सिद्धिप्राप्तिके लिए ग्रहण किए जाने वाले मन्त्र फलदायी होना चाहिए । यदि परीक्षित मन्त्र का फल जीवन है तो उस जीवन वाले मन्त्र को अवश्य ग्रहण करना चाहिए और मरण फल वाले मन्त्र का सदैव त्याग करना चाहिए ॥३२ - ३३॥

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Last Updated : July 28, 2011

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