विधीः - समर्पण

जो मनुष्य प्राणी श्रद्धा भक्तिसे जीवनके अंतपर्यंत प्रतिदिन स्नान, पूजा, संध्या, देवपूजन आदि नित्यकर्म करता है वह निःसंदेह स्वर्गलोक प्राप्त करता है ।


मुखमार्जन
फिर नीचे लिखे मन्त्र को पढकर शुद्ध जल से मुँह धो डाले ----
ॐ संवर्चसा पयसा सन्तनूभिरगन्महि मनसा स,  शिवेन ।
त्वष्टा सुदत्रो व्विदधातु रायोऽनुमार्ष्टु तन्वो यद्विलिष्टम् ॥

‘हम ब्रह्मतेज से, क्षीर आदि रस से, कर्म करने में समर्थ सुद्दढ अङ्गों से और शान्त मन से संयुक्त हों । सम्यक् प्रकार से दान करनेवाले त्वष्टा देवता हमें धन दें और हमारे शरीर में जो शक्ति आदि की न्यूनता आ गयी है उसका मार्जन करें अर्थात् हमारे धन और शरीर की पुष्टि करें ।’

विसर्जन
निम्नाङ्कित मन्त्र पढकर देवताओं का विसर्जन करे---
ॐ देवा गातुविदो गातुं वित्त्वा गातुमित ।
मनसस्पत ऽइमं देव यज्ञ, स्वाहा व्वाते धा: ॥

‘हे यज्ञवेत्ता देवताओं । आप लोग हमारे इस तपणरूपी यज्ञ को समाप्त जानकर अपने गन्तव्यमार्ग को पधारें । हे चित्त के प्रवर्तक परमेश्वर ! मैं इस यज्ञ को आप के हाथ में अर्पण करता हूँ । आप इसे वायु-देवता में स्थापित करें ।’

समर्पण
निम्नाङ्कित वाक्य पढकर यह तर्पण-कर्म भगवान् को समपित करे---
अनेन यथाशक्तिकृतेन देवर्षिमनुष्यपितृतर्पणाख्येन कर्मणा भगवान् मम समस्तपितृस्वरूपी जनार्दनवासुदेव: प्रीयतां न मम ।
ॐ विष्णवे नम: । ॐ विष्णवे नम: । ॐ विष्णवे नम: ॥

॥इति॥

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Last Updated : May 24, 2018

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