विधीः - संक्षिप्त भोजन विधि:
जो मनुष्य प्राणी श्रद्धा भक्तिसे जीवनके अंतपर्यंत प्रतिदिन स्नान, पूजा, संध्या, देवपूजन आदि नित्यकर्म करता है वह निःसंदेह स्वर्गलोक प्राप्त करता है ।
बलिवैश्वदेव के बाद अतिथि-पूजनादि से निवृत्त होकर अपने परिवार के साथ भोजन करें । पहले ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ इस मन्त्र आ उच्चारण करके अपने आगे जल से चार अँगुल का चौकोना मण्डप बनावें और उसीपर भोजन-पात्र रखकर उसमें घृतसहित व्यञ्जन रखावें तथा अपने दाहिने तरफ जलपात्र रखें, फिर भगवद्बुद्धि से अन्न को प्रणाम करके---
ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम् ।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना ॥
इस मन्त्र का तथा---
त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पये ।
गृहाण सुमुखो भूत्वा प्रसीद परमेश्वर ॥
इस मन्त्र का उच्चारण करते हुए अन्न में तुलसीदल छोडकर जलसहित अन्न भगवान् नारायण को अर्पण करें, फिर दोनों हाथों से अन्न को ऊपर से आवृत कर इस मन्त्र का पाठ करें---
ॐ नाभ्या ऽआसीदन्तरिक्ष, शीर्ष्णो द्यौ: समवर्तत ।
पद्भ्यां भूचिर्द्दिश: श्रोत्रात्तथा लोकाँ२॥ अकल्पयन् ॥
‘परमेश्वर की नाभि से अन्तरिक्ष, शिर से द्युलोक, पैरों से भूमि और कानों से दिशाओं की उत्पत्ति हुई । इस प्रकार परमात्मा ने समस्त लोकों की रचना की ।’
तदनन्तर ‘ॐ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा’ इस मन्त्र से आचमन करके आगे लिखे हए पाँच मन्त्रों में से क्रमश: एक-एक को पढकर
एक-एक ग्रास अन्न जो बेर या आँवले के फल के बराबर हो मुँह में डालें---
ॐ प्राणाय स्वाहा ॥१॥ ॐ अपानाय स्वाहा ॥२॥
ॐ व्यानाय स्वाहा ॥३॥ ॐ समानाय स्वाहा ॥४॥
ॐ उदानाय स्वाहा ॥५॥
इसके वाद पुन: आचमन करके मौन होकर यथाविधि भोजन करें ।
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Last Updated : May 24, 2018
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