विधीः - ब्रह्मयज्ञ विधि:

जो मनुष्य प्राणी श्रद्धा भक्तिसे जीवनके अंतपर्यंत प्रतिदिन स्नान, पूजा, संध्या, देवपूजन आदि नित्यकर्म करता है वह निःसंदेह स्वर्गलोक प्राप्त करता है ।


अब संक्षएप में ब्रह्मयज्ञ की विधि दी जा रही है । सर्बप्रथम अपने दाहिने हाथ की कनिष्ठिका अङ्गुली में पवित्री धारणकर जल ले और देश, काल तथा नाम-गोत्र आदि का उच्चारण करके ‘श्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थं यथाशक्ति ब्रह्मयज्ञेनाहं यक्ष्ये’---इस प्रकार संकल्प पढें और फिर नीचे लिखे प्रकार से अङ्गन्यास करें ।
ॐ तिर्य्यग्विलाय चमसोर्ध्वबुध्नाय छन्दःपुरुषाय नम: । शिरसि ।
इस वाक्य को पढकर दाहिने हाथ से सिर का स्पर्श करें ।
ॐ गौतमभरद्वाजाभ्यां नम: । नेत्रयो: ।
यह दो बार पढकर दोनों नेत्रों का स्पर्श करें ।
ॐ विश्वामित्रजमदग्निभ्यां नम: । श्रोत्रयो: ।
इसको दो बार पढकर दोनों कानों का स्पर्श करें ।
ॐ अत्रये नम: । वाचि ।
इसको पढकर वाक-इन्द्रिय मुख का स्पर्श करें ।
ॐ गायत्र्यै छन्दसेऽग्नये नम: । शिरसि ।
इस वाक्य को पढकर मस्तक का स्पर्श करें ।
ॐ उष्णिहे छन्द्से सवित्रे नम: । ग्रीवायाम् ।
इसको पढकर गले का स्पर्श करें ।
ॐ बृहत्यै छन्दसे वृहस्पतये नम: । अनूके ।
इस वाक्य करे पढकर पीठ के बीच की हडडी का स्पर्श करें ।
ॐ बृहद्रथन्तराभ्यां द्यावापृथिवीभ्यां नम: । बाह्वो: ।
इसको दो बार पढकर दोनों भुजाओं का स्पर्श करें ।
ॐ त्रिष्टुभे छन्दसे इन्द्राय नम: । मध्ये ।
इसको पढकर उदर का स्पर्श करें ।
ॐ जगत्यै छन्दसे आदित्याय नम: । श्रोण्यो: ।
इसको दो बार पढकर दोनों नितम्बों का स्पर्श करें ।
ॐ अतिच्छन्दसे प्रजापतये नम: । लिङ्गे ।
इस वाक्य को पढकर लिङ्ग इन्द्रिय का स्पर्श करें ।
ॐ यज्ञायज्ञियाय छन्दसे वैश्वानराय नम: । पायौ ।
इसको पढकर गुदा इन्द्रिय का स्पर्श करें ।
ॐ अनुष्टुभे छन्दसे विश्वेभ्यो देवेभो नम: । ऊर्वो: ।
इसको दो बार-पढकर दोनों घुटनों का स्पर्श करें ।
ॐ द्विपदायै छन्दसे विष्णवे नम: । पादयो: ।
इसको दो बार पढकर दोनों चरणों का स्पर्श करें ।
ॐ विच्छन्दसे वायवे नम: । प्राणेषु ।
इस वाक्य को पढकर नासिका-छिद्रों का स्पर्श करें ।
ॐ न्यृनाक्षरायच्छन्दसे अद्भयो नम: । सर्वाङ्गेषु ।
इसको पढकर दाहिने हाथ के द्वारा बाएँ अङ्ग का और बाएँ हाथ के द्वारा दाहिने अङ्ग का शिर से लेकर पैरोंतक स्पर्श करें ।
इसके बाद निम्नाङ्कित वाक्य पढकर विनियोग करें ।
इषे त्त्वेत्यादि-खंत्रह्मान्तस्य माध्यन्दिनीयकस्य वाजसनेयकस्य यजुर्वेदाम्नायस्य विवस्वानृषि: गायत्र्यादीनि सर्वाणि छन्दांसि, सर्वाणि यजूंषि सर्वाणि सामानि प्रतिलिङ्गोक्ता देवता ब्रह्मयज्ञारम्भे विनियोग: ।
हरि ॐ भूभुव: स्व: तत्सवितुर्व्व रेण्ण्यं भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो न: प्प्रचोदयात् ॥

ॐ इषे त्त्वोर्ज्जे त्त्वा व्वायव स्थ देवो व: सविता प्प्रार्प्पयतु श्रेष्ठतमाय कर्म्मणऽआप्प्यायध्वमघ्न्या ऽइन्द्राय भागं प्रजावतीरनमीवा ऽअयक्ष्मा मा वस्तेन ऽइशत माऽघश, सो ध्रुवा ऽअस्मिन् गोपतौ स्यात बह्णीर्य्यजमानस्य पशून् पाहि ॥

ॐ व्रतमुपैष्ष्यन्नन्तरेणाऽऽहवनीयं च गार्हपत्त्यं च प्प्राङ तिष्ठ्ठन्नप ऽउपस्पृशति तद्यदप ऽउपस्पृशत्त्यमेध्यो वै पुरुषो यदनृतं व्वदति तेन पूतिरन्तरतो मेद्धया वा ऽआपो मेध्यो भूत्वा व्व्रतमुपाऽयानीति पवित्रं वा ऽआप: एवित्रपूतो व्व्रतमुपाऽयानीति तस्माद्वा ऽअप ऽअप ऽउपस्पृशति ।

ॐ अग्निमीले पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम् ।
होतारं रत्नधातमम् ॥
ॐ अग्न ऽआ याहि वीतये गृणानो हव्यदातये ।
हि होता सत्सि बर्हिषि ॥
ॐ शन्नो देवीरभिष्टय ऽआपो भवन्तु पीतये ।
शंय्योरभिस्त्रवन्तु न: ॥

अथानुवाकान् वक्ष्यामि । मण्डलं दक्षिणमक्षि हृदयम् । अथातोऽधिकार: । फलयुक्तानि कर्माणि । अथातो गृह्मस्थालीपाकानां कर्म । अथ शिक्षां प्रवक्ष्यामि । पञ्च संवत्सरमयम् , म य र स त ज भ न । गौ: । ग्मा, ज्मा । वृद्धिरादैच् । समाम्नाय: रामाम्नात: ।

आथातो धर्मजिज्ञासा । अथातो ब्रह्मजिज्ञासा ।
योगीश्वरं याज्ञवल्क्यं प्रणम्य मुनयोऽब्रुवन् ।
वर्णाश्रमेतराणां नो ब्रूहि धर्मानशेषत: ।
नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम् ।
देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत् ॥

उपर्युक्त उद्धरणों का पाठ करके ब्रह्मणे नम:’ ऐसा तीन बार उच्चारण करें फिर निम्नाङ्कित श्लोक पढकर यह ब्रह्मयज्ञ भगवान् को समपित करें ।

इति विद्यातपोयोनिरयोनिविष्णुरीडित: ।
वाग्यज्ञेनार्चितो देव: प्रीयतां मे जनादेव:॥

ॐ विष्णवे नम: । ॐ विष्णवे नम: । ॐ विष्णवे नम: ।

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Last Updated : May 24, 2018

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