नित्य-दान
प्रस्तुत पूजा प्रकरणात भिन्न भिन्न देवी-देवतांचे पूजन, योग्य निषिद्ध फूल यांचे शास्त्र शुद्ध विवेचन आहे.
नित्यकर्ममें दान भी आता है । वेदने आदेश दिया है कि दान बहुत ही श्रध्दाके साथ करना चाहिये। अपनी जैसी सम्पत्ति हो, उसके अनुसार दान करना चाहिये । देते समय अभिमान न हो, लज्जासे विनम्र होकर दान करे । भय मान कर दे । यह दान सुपात्रको करना चाहिये और प्रतिदिन करना चाहिये । यह आवश्यक नही है कि दानकी मात्रा अधिक ही हो । शास्त्रका आदेश है कि यदि स्थिति विपन्न हो तो जो कुछ भोजनके लिये मिले, उसमेंसे आधा ग्रास ही दान कर दे । महाभारतमें कहा गया है कि यदि एक दिन भी दानके बिना बीत जाय, तो उस दिन इस तरहका शोक प्रकट करना चाहिये, जैसे तरह लुटेरोंसे लुट जानेपर मनुष्य करता है । दाता पूरबकी ओर मुख करके दे और ग्रहिता उत्तरकी मुख करके ले । इससे दोनोंका हित होता है । माता, पिता और गुरुको अपने पुण्यका भी दान किया जाता है ।
दान देनेसे पहले दान लेनेवाले ब्राम्हणकी चन्दनादिसे पूजा कर ले ।
देय वस्तुकी भी शुध्दि तथा फ़ुलसे पूजा कर ले तथा देय वस्तुका इस प्रकार संकल्प करे ।
क) निष्काम संकल्प-ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: , अद्य...श्रीपरमात्मप्रीत्यर्थमिदं वस्तु अमुकशर्मणे ब्राम्हणाय तुभ्यं सम्प्रददे ।
ख) सकाम संकल्प-’श्रीपरमात्मप्रीत्यर्थ’ के बाद ’ममैतच्छरीरावच्छिन्नसमस्तपापक्षयसर्वग्रहपीडाशान्तिशरीरोत्थार्तिनाशमन:प्रसादायुरारोग्यदिसर्वसौख्यसम्पत्यर्थ... इदं वस्तु अमुकशर्मणे ब्राम्हणाय तुभ्यं सम्प्रददे ।’
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Last Updated : December 02, 2018
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