माघ शुक्लपक्ष व्रत - श्रीपञ्चमी वसन्तपञ्चमी

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


श्रीपञ्चमी वसन्तपञ्चमी

( पुराणसमुच्चय ) - माघ शुक्ल पूर्वविद्धा पञ्चमीको उत्तम वेदीपर वस्त्र बिछाकर अक्षतोंका अष्टदल कमल बनाये । उसके अग्रभागमें गणेशजी और पृष्ठभागमें ' वसन्त ' - जौ, गेहूँकी बालका पुञ्ज ( जो जलपूर्ण कलशमें डंठलसहित रखकर बनाया जाता है ) स्थापित करके सर्वप्रथम गणेशजीका पूजन करे और पीछे उक्त पुञ्जमें रति और कामदेवका पूजन करे तथा उनपर अबीर आदिके पुष्पोपम छीटे लगाकर वसन्तसदृश बनाये । तत्पश्चात् ' शुभा रतिः प्रकर्तव्या वसन्तोज्ज्वलभूषणा । नृत्यमाना शुभा देवी समस्ताभरणैर्युता ॥ वीणावादनशीला च मदकर्पूरचर्चिता ।' से ' रति ' का और ' कामदेवस्तु कर्तव्यो रुपेणाप्रतिमो भुवि । अष्टबाहुः स कर्तव्यः शङ्खपद्मविभूषणः ॥ चापबाणकरश्चैव मदादञ्चितलोचनः । रतिः प्रीतिस्तथा शक्तिर्मदशक्तिस्तथोज्ज्वला ॥ चतस्त्रस्तस्य कर्तव्याः पन्त्यो रुपमनोहराः । चत्वारश्च करास्तस्य कार्या भार्यास्तनोपगाः ॥ केतुश्च मकरः कार्यः पञ्चबाणमुखो महान् । ' से कामदेवका ध्यान करके विविध प्रकारके फल, पुष्प और पत्रादि समर्पण करे तो गार्हस्थ्यजीवन सुखमय होकर प्रत्येक कार्यमें उत्साह प्राप्त होता है ।

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Last Updated : January 01, 2002

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