धान्यसंक्रान्तिव्रत
( स्कन्दपुराण ) -
मेषार्कके समय स्त्रान करके सूर्यका ध्यान करे और ' करिष्यामि व्रतं देव त्वद्भक्तस्त्वत्परायणः । तदा विघ्रं न मे यातु तव देव प्रसादतः ॥'
से संकल्प करके व्रत करे । तत्पश्चात् अष्टदलपर पूर्वमें भास्कर, अग्निकोणमें रवि, दक्षिणमें विवस्वान्, नैऋत्यमें पूषा, पश्चिममें वरुण, वायव्यमें दिवाकर, उत्तरमें मार्तण्ड, ईशानमें भानु और मध्यमें विश्वात्माका नाम - मन्त्नोसे पूजन करके व्रत करे और इस प्रकार बारह महीने करनेके बाद पूजनसामग्री और १६ सेर अन्न सत्पात्रको दे तो धान्यकी वृद्धि होती है ।