लक्षप्रदक्षिणाव्रत
( विष्णुधर्मोत्तर ) - आषाढ शुक्ल एकादशीसे कार्तिक शुक्ल एकादशीपर्यन्त प्रतिदिन प्रातःस्त्रानादिके पश्चात् वेदमन्त्नों ( पुरुषसूक्तके मन्त्नो ) से पूजन करके
' कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने '
या ' केशवाय नमः ' आदि किसी नामके उच्चारणसे भगवानकी प्रदक्षिणा करे । इस प्रकार यथाक्रम एक लक्ष पूर्ण होनेके पश्चात् उद्यापन, ब्राह्मण - भोजन और विसर्जन करे तो पूर्वजन्म, वर्तमान - जन्म और पुनर्जन्म ( इन तीन जन्मों ) के पाप दूर हो जाते हैं और सुख - शान्तिके साथ सानन्द जीवन व्यतीत होता है ।