हिंदी सूची|व्रत|अन्य व्रत| सुतप्रद धर्ममूलव्रत अन्य व्रत मौनव्रत शत्रुनाशकव्रत लक्षपूजाव्रत लक्षतुलसीदलार्पणव्रत लक्षप्रमामव्रत लक्षप्रदक्षिणाव्रत लक्षवर्तिप्रदानव्रत लक्षवर्तिदानव्रत गोपद्मव्रत धारणपारणव्रत अश्वत्थोपनयनव्रत अश्वत्थप्रदक्षिणाव्रत द्वादशमासव्रत सम्पत्तिप्रद श्रीव्रत सुतप्रद धर्ममूलव्रत मेधावर्द्धक ग्रहणव्रत अनिष्टहर ग्रहणव्रत वैधव्य योग नाशक सावित्रीव्रत वैधव्यहर अश्वत्थव्रत वैधव्यहर कर्कटीव्रत प्रदोष व्रत वैधव्यहर अश्वत्थव्रत वैधव्यहर कर्कटीव्रत वैधव्यहर विवाहव्रत सुतप्रद धर्ममूलव्रत व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है । Tags : dayvratव्रत सुतप्रद धर्ममूलव्रत Translation - भाषांतर सुतप्रद धर्ममूलव्रत ( शुकजातक ) - जन्मलग्न आदिसे बृहस्पतिसे पाँचवें घरका स्वामी त्रिक ( ६, ८, १२ ) में हों और पञ्चम, सप्तम तथा नवमका स्वामी छठे, आठवें और बारहवेंमें हों तो पुत्र - प्राप्तिमे बाधा होती है । अतः उसकी प्राप्तिके निमित्त धर्ममूलक उपाय करने चाहिये । यथा ( १ ) शुक्लपक्षकी सप्तमी, रविवारको प्रातःस्त्रान आदिके बाद ' सत्पुत्रप्राप्तिकामनया सूर्यसप्तमीव्रतमहं करिष्ये ' - यह संकल्प करके सूर्यकी सुवर्णमयी मूर्तिका या आकाशस्थ साक्षात सूर्यका गन्ध, पुष्प आदिसे पूजन कर अलवण एकभुक्त व्रत करे और वर्षपर्यन्त करके उसकी समाप्ति करे । ( २ ) शिवजीके समीप शुभासनपर पूर्वाभिमुख बैठकर उनका करे । ( २ ) शिवजीके समीप शुभासनपर पूर्वाभिमुख बैठकर उनका विधिवत् पूजन करे और पञ्चाक्षरी शिवमन्त्न ( ॐ नमः शिवाय ) का एक लाख या दस हजार जप व्रतपूर्वक नौ मासपर्यन्त करे । ( ३ ) प्रारम्भमें शुक्लपक्षकी दशमी गुरुवारको प्रातः स्त्रान आदि नित्यकर्मसे निवृत्त होकर ' मम सकलपापतापक्षयपूर्वकं सत्पुत्रप्राप्तिकामनया ' देवकीसुत गोविन्द० ' इति संतानगोपालमन्त्नस्य जपं स्तोत्रपाठं वाहं करिष्ये । ' यह संकल्प करके न्यासादिपूर्वक ' ॐ देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते । देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥' इस मन्त्नका प्रतिदिन एक या पाँच हजार जप करे और ब्रह्मचर्य - धारणपूर्वक परिमित हविष्यान्नका एकभुक्त भोजन करे । इस प्रकार प्रतिदिन एक हजारके हिसाबसे सौ दिन अथवा पाँच हजार प्रतिदिनके हिसाबसे बीस दिनमें एक लाख जप अथवा सौ दिनमें ग्यारह सौ स्तोत्रपाठ करके समाप्तिके समय तद्दशांशका हवन, तर्पण - मार्जन करे और ब्राह्मण - भोजन करावे । तथा ( ४ ) अपने मकानके आँगनमें मण्डप बनवाकर उसको ध्वजा - पताका और बन्दनवार आदिसे भूषित करके किसी पुराणसाठी सत्पात्र विद्वानसे हरिवंश - पुराणका श्रद्धापूर्वक श्रवण करे और समाप्तिके दिन हवन, पूजन और ब्राह्मण - भोजन आदि कराके उसे समाप्त करे । इस प्रकार इस चारों प्रयोगोंको एक साथ या यथाक्रम पृथक् - पृथक् अथवा इनमेंसे किसी भी एकको करे तो उससे प्रभावशाली पुत्र प्राप्त होता है । १. वागीशात् पञ्चमेशस्त्रिकभवनगतः पुत्रधर्माङ्गनाथा रन्ध्रेद्वेष्यन्तिमस्थाः । २. तत्प्राप्तिर्धर्ममूला । ( शुकसूत्र ) N/A References : N/A Last Updated : January 16, 2012 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP