भजन - गाइ गाइ अब का कहि गाऊँ । ...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


गाइ गाइ अब का कहि गाऊँ ।

गावनहार को निकट बताऊँ ॥टेक॥

जबलग है या तनकी आसा, तबलग करै पुकारा ।

जब मन मिल्यौ आस नहिं तनकी, तब को गावनहारा ॥१॥

जबल नदी न समुद्र समावै, तबलग बढ़ै हँकारा ।

जब मन मिल्यो राम-सागरसों, तब यह मिटी पुकारा ॥२॥

जबलग भगति मुकतिकी आसा, परम तत्त्व सुनि गावै ।

जहँ-जहँ आस धरत है यह मन, तहँ-तहँ कछू न पावै ॥३॥

छाड़ै आस निरास परमपद, तब सुख सति कर होई ।

कह रैदास जासों और करत है, परम तत्त्व अब सोई ॥४॥

N/A

References : N/A
Last Updated : December 20, 2007

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP