गाइ गाइ अब का कहि गाऊँ ।
गावनहार को निकट बताऊँ ॥टेक॥
जबलग है या तनकी आसा, तबलग करै पुकारा ।
जब मन मिल्यौ आस नहिं तनकी, तब को गावनहारा ॥१॥
जबल नदी न समुद्र समावै, तबलग बढ़ै हँकारा ।
जब मन मिल्यो राम-सागरसों, तब यह मिटी पुकारा ॥२॥
जबलग भगति मुकतिकी आसा, परम तत्त्व सुनि गावै ।
जहँ-जहँ आस धरत है यह मन, तहँ-तहँ कछू न पावै ॥३॥
छाड़ै आस निरास परमपद, तब सुख सति कर होई ।
कह रैदास जासों और करत है, परम तत्त्व अब सोई ॥४॥