जय जय रसिक रवनीरवन ।
रुप, गुन, लावन्य, प्रभुता, प्रेम पूरन भवन ॥
बिपति जानकी भानबेकों, तुम बिना कहु कवन ।
हरहु मनकी मलिनता, ब्यापै न माया पवन ॥
बिषय रस इंद्री अजीरन अति करावहु बवन ।
खोलिये हियके नयन, दरसै सुखद बन अवन ॥
चतुर, चिंतामनि, दयानिधि, दुसह दारिद दवन ।
मेटिये भगवत ब्यथा, हँसि भेंटिये तजि मवन ॥