कमलदल नैननिकी उनमानि ।
बिसरत नाहिं सखी, मो मनतं मन्द-मन्द मुसुकानि ॥
यह दसननि दुति चपलाहूतें महाचपल चमकानि ।
बसुधाकी बस करी मधुरता, सुधा-पगी बतरानि ॥
चढ़ी रहै चित उर बिसालकी, मुकुत माल थहरानि ।
नृत्य-समय पीताम्बरहूकी फहरि-फहरि फहरानि ॥
अनुदिन श्रीबृंदाबन ब्रजतें, आवन आवन जानि ।
अब 'रहीम' चिततें न टरति है, सकल स्यामकी बानि ॥