गौरीव्रत ( व्रतविज्ञान ) -
यह चैत्र कृष्ण प्रतिपदासे चैत्र शुक्ल द्वितीयातक किया जाता है । इसको विवाहिता और कुमारी दोनों प्रकारकी स्त्रियाँ करती हैं ॥ इसके लिये होलीकी भस्म और काली मिट्टी - इनके मिश्रणसे गौरीकी मूर्ति बनायी जाती है और प्रतिदिन प्रातःकालके समय समीपके पुष्पोद्यानसे फल, पुष्प, दूर्वा और जलपूर्ण कलश लावर उसको गीत - मन्तोंसे पूजती हैं । यह व्रत विशेषकर अहिवातकी रक्षा और पतिप्रेमकी वृद्धिके निमित्त किया जाता है ।