हिंदी सूची|व्रत|मासिक व्रत परिचय|चैत्रके व्रत|चैत्र कृष्णपक्ष व्रत| वारुणीयोग चैत्र कृष्णपक्ष व्रत आरंभ गौरीव्रत होलामहोत्सव संकष्टचतुर्थीव्रत शीतलाष्टमी संतानाष्टमी कृष्णैकादशी वारुणीयोग होलामहोत्सव केदारदर्शन चैत्री अमा वह्लीव्रत पितृव्रत चैत्र कृष्णपक्ष व्रत - वारुणीयोग व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है । Tags : chaitrafestivalmonthvratचैत्रमहिनाव्रतसण वारुणीयोग Translation - भाषांतर वारुणीयोग - ( वाचस्पति - निबन्ध ) - यह पुण्यप्रद महायोग तीन प्रकारका होता है । पहला चैत्र कृष्ण त्रयोदशीको वारुण नक्षत्र ( शतभिषा ) हो तो ' वारुणी', दूसरा उसी दिन शतभिषा और शनिवार हो तो ' महावारुणी ' होता है । इस योगमें गङ्गदि तीर्थस्थानोंमें स्त्रान, दान और उपवासादि करनेसे शतशः सूर्यग्रहणोंके समान फल होता है । उस दिनका पुण्यकाल पञ्चाङ्से ज्ञात हो सकता है । ( उदाहरणार्थ तीनों योग इस प्रकार हैं । चैत्र कृष्ण त्रयोदशी १३।७, शतभिषा १७।५ - इस दिन प्रातः १३।७ तक ' वारुणी '; चैत्र कृष्ण १३ शनिवार ५।१५, शतभिषा ३०।३२ - इस दिन ५।१५ तक महावारुणी; और चैत्र कृष्ण १३ शनिवार ५०।५५, शतभिषा २२।२० और शुभयोग १३।७ - इस दिन पूर्वाह्नमें १३ घड़ी ७ पलतक महामहावारुणी मानना चाहिये । त्रयोदशीमें नक्षत्रादि जितनी देर रहें उतनी घड़ीतक वारुनी आदि रहते हैं । ) चैत्रासिते वारुणऋक्षयुक्ता त्रयोदशी सुर्यसुतस्य वारे । योगे शुभे सा महती महत्या गङ्गजलेऽर्कग्रहाकोटितुल्या ॥ ( त्रिस्थलीसेतु ) N/A References : N/A Last Updated : January 16, 2009 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP