अरज म्हाँरी जाय कहीज्यो जी ।
ऊधोजी ! मोहन ने समझाय, वृन्दावन बेगि ल्याज्यो जी ॥टेर॥
वृन्दावन फीको लागे जी !
ऊधोजी ! नैना देख्यो नहीं जाय, आग उर भीतर जागे जी ॥
यसोदा अति अकुलावे जी !
ऊधोजी ! नन्दजी करत विलाप, मोहन कब दर्श दिखावे जी !
राधा याने याद करे छै जी !
ऊधोजी ! छिन छिनकरत विलाप, नैणाँ मैं नीर बहै छै जी ॥
ऐसी हम नहि जानी जी !
ऊधोजी ! अध बिच गये छिटकाय, पीड़ म्हारी नाहि पिछानी जी ॥
दासी म्हारी वैर्न भई छै जी !
ऊधोजी ! मोहन ने लियो मोय जोय चित्त रोय रह्यो छै जी ॥
स्याम बिना सेज अलूँणी !
ऊधोजी ! सिर पर डारुँगी खाख, जाय बन तापूँ धूणी जी ॥
ऊधोजी ! थाँरा गुण भूलूँ मैं नाहिं, सूरत झटपट दिखलाओ जी ॥