लीला गान - आज हरि आये विदुर -घर ...

’लीलागान’में भगवल्लीकी मनोमोहिनी मनको लुभाती है ।


आज हरि आये विदुर-घर पावणा ॥टेक॥

विदुर नहीं घर थी विदुरानी, आवत देखे सारंग पाणी ।

फूली अंग समावे न चिन्त्या, भोजन कहाँ जिमावणा ॥१॥

केला भोत प्रेमसों ल्याई, गिरी-गिरी सब देत गिराई ।

छिलका देत श्याम-मुख माही, लागे भोत सुहावणा ॥२॥

इतने माँय विदुरजी आये, खारे-खोटे वचन सुनाये ।

छिलका देत श्याम-मुख माँही, कहाँ गमाई भावना ॥३॥

केला लिया विदुर कर माँही, गिरी देत गिरधर मुख माँही ।

कहे कृष्णजी सुनो विदुरजी ! वो स्वाद नहीं आवणा ॥४॥

बासी-कूसी, रुखे-सूखे, हम तो विदुर जी ! प्रमके भूखे ।

शम्भु सखी धन-धन विदुरानी, भक्तन मान बढ़ावणा ॥५॥

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Last Updated : January 22, 2014

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