भगदत्त n. प्राग्ज्योत्षापुर का अधिपति, जो नरक (भौमासुर) तथा भूमि का पुत्र था
[म.द्रो.२८.१] । इसे ‘भौमासुर’ मातृकनाम भी था, परन्तु कई ग्रंथों में इसे ‘भौमासुरपुत्र’ भी कहा गया है
[भा.१०.५९] । एक बार इसके पिता भौम ने इन्द्र के कवच एवं कुण्डल का हरण किया, जिसके कारण क्रुद्ध होकर कृष्ण ने युद्ध में उसे परास्त कर उसे एवं उसके सात पुत्रों को मौत के घाट उतार दिया । भूमि ने कृष्ण से विलाप कर अपने पुत्र का जीवनदान मॉंगा । इस प्रकार कृष्ण ने प्रसन्न होकर भगदत्त को पुनः जीवित कर दिया । पिता के पश्चात् यह प्राग्ज्योतिषपुर देश का अधिपति हुआ, जिसकी राजधानी प्रागज्योतिष थी । यह देश आधुनिक काल का आसाम प्रांत ही है । इसका किरात, चीन एवं समुद्रतटवर्ती सैनिकों के साथ युद्ध भी हुआ था । यह युद्धशिक्षा में पारंगत था । इसे यवनाधिप भी कहा गया है
[म.स.१३.१३-१४] । आसाम प्रांत में हाथी उस समय भी होते थे, अतएव यह गजयुद्ध में बडा प्रवीण था । यह पण्डु राजा का मित्र था
[म.स.१३.१४] । यह द्रौपदी के स्वयंवर गया था
[म.आ.१७७.१२] । जरासंध का मित्र होने पर भी यह युधिष्ठिर के प्रति पिता की भॉंति स्नेह रखता था । यह इन्द्र का मित्र एवं इन्द्र के समान ही पराक्रमी था । राजसूय दिग्विजय के समय अर्जुन के साथ इसका घोर हुआ था । अर्जुन की वीरता से प्रसन्न हो कर, इसने उसकी इच्छा के अनुसार कार्य करने की प्रतिज्ञा की थी, तथा अतुल धनराशि भेंट देकर उसे विदा किया था
[म.स.२३.२७४] युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में यह यवनों के साथ उपस्थित था, अच्छी जाति के वेगशाली अश्व एवं बहुत भेंटसामग्री इसने युधिष्ठिर को दी थी । इसने युधिष्ठिर को बडी शान शौकत के साथ हिरे तथा पद्मरागमणि के आभूषण एवं विशुद्ध हाथीदॉंत से बनी मूठवाली तलवार भेंट दे कर अपना आदर भावना प्रकट किया था
[म.स.४७.१४] । भारतीय युद्ध में, चीन तथा किरात सैनिकों के साथ भगदत्त कौरवों पक्ष में शामील हुआ था
[म.उ.१९.१४-१५] । यह युद्धभूमि में बडा बलवान एवं साहसी राजा था । बडे बडे योद्धाओं से इसकी लढाइयॉं हुयी थी । भारतीय युद्ध में यह कौरवपक्ष में था । था यह सेनासहित दुर्योधन की सहायता के लिए आया था
[म.उ,.१९.१५] । प्रथम दिन के संग्राम में ही इसका एवं विराट का युद्ध हुआ था
[म.भीष्म.४३.४६-४८] । इसने अपने बाहुबल से भीम को भी रणभूमी में मूर्च्छितकर, घटोत्कच को पराजित किया था
[म.भी.६०.४७] । इसने द्शार्णराज को युद्धभूमि में पराजित क्रिया था, एवं वह इसके द्वारा ही मारा गया
[म.भी. ९१.४२-४४] । इसने भीमसेन के सारथि विशोक को युद्धभूमि में लडते लडते मूर्च्छित कर दिया था । इसके द्वारा क्षत्रदेव की दाहिनी भुजा का विदारण हुआ था इसके सिवाय सात्यकि एवं द्रुपद के साथ भी इसका घोर संग्राम हुआ, जिसमें गजयुद्ध का कौशल दिखाते हुए, इसने अपने बाणों से सेना को त्रस्त कर दिया था
[म.भी.१०७.७-१३] । एकबा कर्ण ने अपने दिग्विजय के समय इसे पराजित किया था
[म.व.परि.१.२४.३६] । इसका अर्जुन के साथ कई बार युद्ध हुआ
[.म.भी. ११२.५६-६०] । इसका अन्तिम युद्ध भी अर्जुन के साथ हुआ । उस समय यह काफी वृद्ध हो चुका था । बुढापे के कारण बढी हुई श्वेत पलकों को पट्टे से बॉंध कर, यह युद्धभूमि में अर्जुन के साथ डटा रहा । इसने उसके ऊपर वैष्णवास्त्र फेंका, तब अर्जुन ने उस अस्त्र का नाश कर, इसके पलकों के पट्टे को तोड कर इसका वध किया । यह घटना मार्गशीर्ष वद्य दशमी को हुयी थी (भारत सावित्री) भगदत्त के कृतप्रज्ञ तथा वज्रदत्त नामक पुत्र थे । कृतप्रज्ञ भारतीय नकुल के द्वारा मारा गया अतएव वज्रदत्त राजगद्दी का अधिकारी बनाया गया
[म.व.४.,२९] । अर्जुन का वज्रदत्त से भी युद्ध था, जिसमें अर्जुन ने उसे जीता था
[म.आश्व.७५.१-२०] ।