कौसल्या n. कोसल देश के भानुमान राजा की कन्या तथा राजा दशरथ की पटरानी । इसे हजार गॉंव स्त्री-धन के स्वरुप में नैहर से मिले थे
[वा.रा.अयो. ३१.२२-२३] । इसका पुत्र रामचंद्र । यह दशरथ की पहली स्त्री थी । राम को युवराज्यभिषेक करने की बात निश्चित हुई । यह समाचार कौसल्या को राम के द्वारा ही मिला । कैकेयी को बताने के लिये राजा स्वयं गया था । भरत के कहने से पता चलता है कि, कौसल्या कैकेयी के साथ वहन सा व्यवहार करती थी
[वा.रा.अयो. ७३. १०] । परंतु कैकेयी एवं उसके परिवार के लोग बार बार इसका अपमान करते थे । वा.रा.अयो.२०.३९) । कैकेयी व्यंगवचनोम से इसका मर्मभेद करती थी
[वा.रा.अयो.२०.४४] । राम इसके पास वन जाने के लिये अनुमति मॉंगने गया । तब लक्ष्मण ने, पिता का निग्रह कर राज्य पर अधिकार करने का उपाय सुझाया । उस समय कौसल्या ने प्रच्छन्न रुप से संमति दी
[वा.रा.अयो.२१.२१] । संभवतः निरुपाय हो कर इसने संमति दी होगी । राम को इस बात की स्पष्ट कल्पना थीं कि, वन जाने के बाद माता की कुछ भी कदर नहीं होगी
[वा.रा.अयो.३१.११] । पंद्रहवें वर्ष राम के लौटेन पर भरत राज्य एवं कोश लौटा देगा, इसकी संभावना न थी
[वा.रा.अयो.६१.११] । राम के वन चले के बाद, यह दशरथ से मर्मस्पर्शी बातें करने लगी । उस समय दयनीय अवस्था में दशरथ ने कौसल्या को हात जोडे । तब कौसल्या को अपनी भूल ध्यान में आयी । पुत्रशोक से व्याकुल होने के कारण, कटुवचन कहे, यह बात उसने मान्य की
[वा.रा.अयो.६२.१४] । यह मृदु स्वभाव की थी । पतिसुख से वंचित तथा सौतद्वारा सताये जाने के कारण, यह उदासीन वृत्ति से रहती थी । इस वृत्ति का राम के चरित्र पर बहुत परिणाम हुआ । राम के चरित्र में अंतर्भूत धार्मिकता का अंश इसी की देन थी ।
कौसल्या II. n. काशीराज की कन्या अम्बिका
[म.आ.१००.४.१०७५] ।
कौसल्या III. n. कृष्णपिता वसुदेव की एक पत्नी ।