रोहित n. (सू. इ.) एक सुविख्यात इक्ष्वाकुवंशीय राजा, जो हरिश्वन्द्र राजा का पुत्र था । विष्णु एवं मार्कंडेय में इसे रोहिताश्व, एवं रोहितास्य कहा गया है (मार्कं २.७-९_ । इसकी माता का नाम तारामती था ।
रोहित n. ऐतरेय ब्राह्मण में प्राप्त शुन:शेप संबंधी सुविख्यात कथा में इसका निर्देश प्राप्त है
[ऐ. ब्रा. ७.१४] ;
[सां. श्रौ. १५.१८.८] । हरिश्वन्द्र का यह पुत्र वरुण देवता की कृपा से उत्पन्न हुआ था । इस कृपा का बदला चुकाने के लिए, इस बलि के रूप में प्रदान करने का आश्वासन हरिश्वन्द्र ने वरुण देवता को दिया था । अपत्यवात्सल्य के कारण, हरिश्वन्द्र अपना यह आश्वासन बाईस वर्षों तक पूरा न कर सका । अपने पिता के आश्वासन का रहस्य ज्ञान होते ही, उससे छुटकारा पाने के लिये यह अरण्य में भाग गया । किन्तु वरुण को यह ज्ञात होते ही, उसने इसके पिता हरिश्वन्द्र के उदर में रोग उत्पन्न किया, जिसकी वार्ता सुनते ही यह अयोध्या लौट आया । किन्तु इसके पुरोहित देवराज वसिष्ठ ने इसे पुन: एकबार विजनवासी होने की सलाह दी । इस प्रकार बाईस वर्ष बीत जाने के बाद, इसे भार्गव वंश के अजीगर्त ऋषि का मँझला पुत्र शुन:शेप आ मिला, जो सौ गायों के मोल में इसके बदले वरुण को बलि जाने लिये तैयार हुआ । तत्पश्वात् हुए यज्ञ में विश्वामित्र ने शुन:शेप की यज्ञस्तंभ से मुक्तता की, एवं उसे अपना पुत्र मान लिया शुन:शेप देखिये: भा. ९.७.७-२५;
[ब्रह्म १०४] । विश्वामित्र की दक्षिणा की पूर्ति करने के लिए, हरिश्वन्द्र ने इसे काशी नगरी के वृद्ध ब्राह्मण को बेचा था । विश्वामित्र के द्वारा ली गई सत्वपरीक्षा में, इसे सर्पदश हो कर यह मृत भी हुआ था, किन्यु पश्वात् देवताओं की कृपा से यह पुन: जीवित हुआ । हरिश्वन्द्र के पश्चात् यह अयोध्या का राजा हुआ, जहाँ इसने रोहितपुर नामक दुर्गयुक्त्त नगरी की स्थापना की । वहाँ इसने काफी वर्षों तक राज्य किया । अंत में विरक्त्ति प्राप्त होने पर इसने रोहितपुर नगरी एक ब्राह्मण को दान में दी, एवं यह स्वर्लोक चला गया ।
रोहित n. इसकी पत्नी का नाम चंद्रवती था, जिससे इसे हरित नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था
[ह. वं. १.१३.] ।
रोहित II. n. लोंहित ऋषि का नामातर (विश्वामित्र देखिये) ।