शनि n. एक पापग्रह, जो नौ ग्रहों में से एक प्रमुख ग्रह माना जाता है
[मत्स्य. ९३.४४] । इसे ‘शनैश्र्वर’ नामांतर भी प्राप्त था । लोहे से बने हुए रथ से यह समस्त ग्रहमंडल का परिभ्रमण तीस माह में पुरा करता है
[भा. ५.२२.१६] ।
शनि n. इस साहित्य में इसे महातेजस्वी एवं तीक्ष्ण स्वभाववाला ग्रह कहा गया है । इसे छाया एवं विवस्वत् (मार्तंड) का पुत्र कहा गया है
[भा. ६.६.४१] ;
[विष्णु. १.८.११] । इसके भाई का नाम सावर्णि था
[विष्णुधर्म. १.१०६] । आगे चल कर अपने पिता सूर्य की आज्ञा से यह ग्रह बन गया । कालिकापुराण में भी इसे सूर्यपुत्र कहा गया है, एवं सती की मृत्यु के पश्चात् शिव के आँखों से जो आंसू टपके, उसीके कारण इसके कृष्णवर्णीय बनने की कथा वहाँ प्राप्त है
[कालि. १८] । आगे चल कर यह मनुष्यों को अत्यंत त्रस्त करने लगा, जिस कारण शिव ने मेषादि राशि इसके अधिकार में दी, एवं पूजा करनेवाले लोगों को सुख एवं समृद्धि प्रदान करने की आज्ञा इसे दी
[स्कंद. ५.१.५०] ।
शनि n. शिव एवं त्रिपुर के युद्ध में, इसने शिव के रथ पर आरूढ हो कर नरकासुर से युद्ध किया था
[भा. ८.१०.३३] । एक बार अश्वत्थ एवं पिप्पल अगस्त्य ऋषि को अत्याधिक त्रस्त करने लगे, जिस कारण इसने उसका वध किया था
[ब्रह्म. ११८] ।
शनि n. ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि से शनि जब रोहिणी नक्षत्र को पीड़ित करता है (रोहिणीशकट का भेदन), तब पृथ्वी के मनुष्यों के लिए वह एक अशुभ योग माना जाता है । रोहिणी नक्षत्र का देवता प्रजापति होता है, जिस कारण शनि के द्वारा रोहिणीशकट का भेद होने पर उसका दुष्परिणाम प्रजापति पर हो कर, सारे पृथ्वी पर लोकक्षय होता है । दशरथ राजा के राज्यकाल में ऐसा ही कुयोग उत्पन्न हुआ था । उस समय दशरथ राजाने शनि से युद्ध कर, इसे रोहिणीशकट के भेदन से परावृत्त किया । उस समय दशरथ के द्वारा शनि का गुणगान किय जाने पर, इसने उसे आशीर्वाद दिया, ‘जो लोग अपनी प्रिय वस्तुओं का दान कर मेरी उपासना करेंगे, उनकी मैं रक्षा करूँगा’।