दोहा
जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग ।
पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग ॥११॥
चौपाला
जे जनमे कलिकाल कराला । करतब बायस बेष मराला ॥
चलत कुपंथ बेद मग छाँड़े । कपट कलेवर कलि मल भाँड़ें ॥
बंचक भगत कहाइ राम के । किंकर कंचन कोह काम के ॥
तिन्ह महँ प्रथम रेख जग मोरी । धींग धरमध्वज धंधक धोरी ॥
जौं अपने अवगुन सब कहऊँ । बाढ़इ कथा पार नहिं लहऊँ ॥
ताते मैं अति अलप बखाने । थोरे महुँ जानिहहिं सयाने ॥
समुझि बिबिधि बिधि बिनती मोरी । कोउ न कथा सुनि देइहि खोरी ॥
एतेहु पर करिहहिं जे असंका । मोहि ते अधिक ते जड़ मति रंका ॥
कबि न होउँ नहिं चतुर कहावउँ । मति अनुरूप राम गुन गावउँ ॥
कहँ रघुपति के चरित अपारा । कहँ मति मोरि निरत संसारा ॥
जेहिं मारुत गिरि मेरु उड़ाहीं । कहहु तूल केहि लेखे माहीं ॥
समुझत अमित राम प्रभुताई । करत कथा मन अति कदराई ॥
दोहा
सारद सेस महेस बिधि आगम निगम पुरान ।
नेति नेति कहि जासु गुन करहिं निरंतर गान ॥१२॥
चौपाला
सब जानत प्रभु प्रभुता सोई । तदपि कहें बिनु रहा न कोई ॥
तहाँ बेद अस कारन राखा । भजन प्रभाउ भाँति बहु भाषा ॥
एक अनीह अरूप अनामा । अज सच्चिदानंद पर धामा ॥
ब्यापक बिस्वरूप भगवाना । तेहिं धरि देह चरित कृत नाना ॥
सो केवल भगतन हित लागी । परम कृपाल प्रनत अनुरागी ॥
जेहि जन पर ममता अति छोहू । जेहिं करुना करि कीन्ह न कोहू ॥
गई बहोर गरीब नेवाजू । सरल सबल साहिब रघुराजू ॥
बुध बरनहिं हरि जस अस जानी । करहि पुनीत सुफल निज बानी ॥
तेहिं बल मैं रघुपति गुन गाथा । कहिहउँ नाइ राम पद माथा ॥
मुनिन्ह प्रथम हरि कीरति गाई । तेहिं मग चलत सुगम मोहि भाई ॥
दोहा
अति अपार जे सरित बर जौं नृप सेतु कराहिं ।
चढि पिपीलिकउ परम लघु बिनु श्रम पारहि जाहिं ॥१३॥
चौपाला
एहि प्रकार बल मनहि देखाई । करिहउँ रघुपति कथा सुहाई ॥
ब्यास आदि कबि पुंगव नाना । जिन्ह सादर हरि सुजस बखाना ॥
चरन कमल बंदउँ तिन्ह केरे । पुरवहुँ सकल मनोरथ मेरे ॥
कलि के कबिन्ह करउँ परनामा । जिन्ह बरने रघुपति गुन ग्रामा ॥
जे प्राकृत कबि परम सयाने । भाषाँ जिन्ह हरि चरित बखाने ॥
भए जे अहहिं जे होइहहिं आगें । प्रनवउँ सबहिं कपट सब त्यागें ॥
होहु प्रसन्न देहु बरदानू । साधु समाज भनिति सनमानू ॥
जो प्रबंध बुध नहिं आदरहीं । सो श्रम बादि बाल कबि करहीं ॥
कीरति भनिति भूति भलि सोई । सुरसरि सम सब कहँ हित होई ॥
राम सुकीरति भनिति भदेसा । असमंजस अस मोहि अँदेसा ॥
तुम्हरी कृपा सुलभ सोउ मोरे । सिअनि सुहावनि टाट पटोरे ॥
दोहा
सरल कबित कीरति बिमल सोइ आदरहिं सुजान ।
सहज बयर बिसराइ रिपु जो सुनि करहिं बखान ॥१४ (क )॥
सो न होइ बिनु बिमल मति मोहि मति बल अति थोर ।
करहु कृपा हरि जस कहउँ पुनि पुनि करउँ निहोर ॥१४ (ख )॥
कबि कोबिद रघुबर चरित मानस मंजु मराल ।
बाल बिनय सुनि सुरुचि लखि मोपर होहु कृपाल ॥१४ (ग )॥
सो ।
बंदउँ मुनि पद कंजु रामायन जेहिं निरमयउ ।
सखर सुकोमल मंजु दोष रहित दूषन सहित ॥१४ (घ )॥
बंदउँ चारिउ बेद भव बारिधि बोहित सरिस ।
जिन्हहि न सपनेहुँ खेद बरनत रघुबर बिसद जसु ॥१४ (ङ )॥
बंदउँ बिधि पद रेनु भव सागर जेहि कीन्ह जहँ ।
संत सुधा ससि धेनु प्रगटे खल बिष बारुनी ॥१४ (च )॥
दोहा
बिबुध बिप्र बुध ग्रह चरन बंदि कहउँ कर जोरि ।
होइ प्रसन्न पुरवहु सकल मंजु मनोरथ मोरि ॥१४ (छ )॥
चौपाला
पुनि बंदउँ सारद सुरसरिता । जुगल पुनीत मनोहर चरिता ॥
मज्जन पान पाप हर एका । कहत सुनत एक हर अबिबेका ॥
गुर पितु मातु महेस भवानी । प्रनवउँ दीनबंधु दिन दानी ॥
सेवक स्वामि सखा सिय पी के । हित निरुपधि सब बिधि तुलसीके ॥
कलि बिलोकि जग हित हर गिरिजा । साबर मंत्र जाल जिन्ह सिरिजा ॥
अनमिल आखर अरथ न जापू । प्रगट प्रभाउ महेस प्रतापू ॥
सो उमेस मोहि पर अनुकूला । करिहिं कथा मुद मंगल मूला ॥
सुमिरि सिवा सिव पाइ पसाऊ । बरनउँ रामचरित चित चाऊ ॥
भनिति मोरि सिव कृपाँ बिभाती । ससि समाज मिलि मनहुँ सुराती ॥
जे एहि कथहि सनेह समेता । कहिहहिं सुनिहहिं समुझि सचेता ॥
होइहहिं राम चरन अनुरागी । कलि मल रहित सुमंगल भागी ॥
दोहा
सपनेहुँ साचेहुँ मोहि पर जौं हर गौरि पसाउ ।
तौ फुर होउ जो कहेउँ सब भाषा भनिति प्रभाउ ॥१५॥
चौपाला
बंदउँ अवध पुरी अति पावनि । सरजू सरि कलि कलुष नसावनि ॥
प्रनवउँ पुर नर नारि बहोरी । ममता जिन्ह पर प्रभुहि न थोरी ॥
सिय निंदक अघ ओघ नसाए । लोक बिसोक बनाइ बसाए ॥
बंदउँ कौसल्या दिसि प्राची । कीरति जासु सकल जग माची ॥
प्रगटेउ जहँ रघुपति ससि चारू । बिस्व सुखद खल कमल तुसारू ॥
दसरथ राउ सहित सब रानी । सुकृत सुमंगल मूरति मानी ॥
करउँ प्रनाम करम मन बानी । करहु कृपा सुत सेवक जानी ॥
जिन्हहि बिरचि बड़ भयउ बिधाता । महिमा अवधि राम पितु माता ॥
दोहा
बंदउँ अवध भुआल सत्य प्रेम जेहि राम पद ।
बिछुरत दीनदयाल प्रिय तनु तृन इव परिहरेउ ॥१६॥
चौपाला
प्रनवउँ परिजन सहित बिदेहू । जाहि राम पद गूढ़ सनेहू ॥
जोग भोग महँ राखेउ गोई । राम बिलोकत प्रगटेउ सोई ॥
प्रनवउँ प्रथम भरत के चरना । जासु नेम ब्रत जाइ न बरना ॥
राम चरन पंकज मन जासू । लुबुध मधुप इव तजइ न पासू ॥
बंदउँ लछिमन पद जलजाता । सीतल सुभग भगत सुख दाता ॥
रघुपति कीरति बिमल पताका । दंड समान भयउ जस जाका ॥
सेष सहस्त्रसीस जग कारन । जो अवतरेउ भूमि भय टारन ॥
सदा सो सानुकूल रह मो पर । कृपासिंधु सौमित्रि गुनाकर ॥
रिपुसूदन पद कमल नमामी । सूर सुसील भरत अनुगामी ॥
महावीर बिनवउँ हनुमाना । राम जासु जस आप बखाना ॥
दोहा
प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यानधन ।
जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर ॥१७॥
चौपाला
कपिपति रीछ निसाचर राजा । अंगदादि जे कीस समाजा ॥
बंदउँ सब के चरन सुहाए । अधम सरीर राम जिन्ह पाए ॥
रघुपति चरन उपासक जेते । खग मृग सुर नर असुर समेते ॥
बंदउँ पद सरोज सब केरे । जे बिनु काम राम के चेरे ॥
सुक सनकादि भगत मुनि नारद । जे मुनिबर बिग्यान बिसारद ॥
प्रनवउँ सबहिं धरनि धरि सीसा । करहु कृपा जन जानि मुनीसा ॥
जनकसुता जग जननि जानकी । अतिसय प्रिय करुना निधान की ॥
ताके जुग पद कमल मनावउँ । जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ ॥
पुनि मन बचन कर्म रघुनायक । चरन कमल बंदउँ सब लायक ॥
राजिवनयन धरें धनु सायक । भगत बिपति भंजन सुख दायक ॥
दोहा
गिरा अरथ जल बीचि सम कहिअत भिन्न न भिन्न ।
बदउँ सीता राम पद जिन्हहि परम प्रिय खिन्न ॥१८॥
चौपाला
बंदउँ नाम राम रघुवर को । हेतु कृसानु भानु हिमकर को ॥
बिधि हरि हरमय बेद प्रान सो । अगुन अनूपम गुन निधान सो ॥
महामंत्र जोइ जपत महेसू । कासीं मुकुति हेतु उपदेसू ॥
महिमा जासु जान गनराउ । प्रथम पूजिअत नाम प्रभाऊ ॥
जान आदिकबि नाम प्रतापू । भयउ सुद्ध करि उलटा जापू ॥
सहस नाम सम सुनि सिव बानी । जपि जेई पिय संग भवानी ॥
हरषे हेतु हेरि हर ही को । किय भूषन तिय भूषन ती को ॥
नाम प्रभाउ जान सिव नीको । कालकूट फलु दीन्ह अमी को ॥
दोहा
बरषा रितु रघुपति भगति तुलसी सालि सुदास ।
राम नाम बर बरन जुग सावन भादव मास ॥१९॥
चौपाला
आखर मधुर मनोहर दोऊ । बरन बिलोचन जन जिय जोऊ ॥
सुमिरत सुलभ सुखद सब काहू । लोक लाहु परलोक निबाहू ॥
कहत सुनत सुमिरत सुठि नीके । राम लखन सम प्रिय तुलसी के ॥
बरनत बरन प्रीति बिलगाती । ब्रह्म जीव सम सहज सँघाती ॥
नर नारायन सरिस सुभ्राता । जग पालक बिसेषि जन त्राता ॥
भगति सुतिय कल करन बिभूषन । जग हित हेतु बिमल बिधु पूषन ।
स्वाद तोष सम सुगति सुधा के । कमठ सेष सम धर बसुधा के ॥
जन मन मंजु कंज मधुकर से । जीह जसोमति हरि हलधर से ॥
दोहा
एकु छत्रु एकु मुकुटमनि सब बरननि पर जोउ ।
तुलसी रघुबर नाम के बरन बिराजत दोउ ॥२०॥
चौपाला
समुझत सरिस नाम अरु नामी । प्रीति परसपर प्रभु अनुगामी ॥
नाम रूप दुइ ईस उपाधी । अकथ अनादि सुसामुझि साधी ॥
को बड़ छोट कहत अपराधू । सुनि गुन भेद समुझिहहिं साधू ॥
देखिअहिं रूप नाम आधीना । रूप ग्यान नहिं नाम बिहीना ॥
रूप बिसेष नाम बिनु जानें । करतल गत न परहिं पहिचानें ॥
सुमिरिअ नाम रूप बिनु देखें । आवत हृदयँ सनेह बिसेषें ॥
नाम रूप गति अकथ कहानी । समुझत सुखद न परति बखानी ॥
अगुन सगुन बिच नाम सुसाखी । उभय प्रबोधक चतुर दुभाषी ॥