हिन्दी पदावली - पद ८१ से ९०
संत नामदेवजी मराठी संत होते हुए भी, उन्होंने हिन्दी भाषामें सरल अभंग रचना की ।
राग माली गौडी
८१
हमारै गोपालराजा गोपालराजा । और देव सूं नाहिन काजा ॥टेक॥
काहू सुमृत वेद पुराना । चरन कंवल मेरे मन माना ॥१॥
काहू के लाछिमी भंडार । मेरे राम को नांम अधार ॥२॥
काहूके है गै पाइक हाथी । मेरे रांम नांव संघाती ॥३॥
सरब लोक जाको जस गाजा । नांमां का चित हरि सूं लागा ॥४॥
८२
कहि मन गोविंद गोविंद ।
चरन कवल चितवनि जिनि बिसरै गोविंद गोविंद गोविंद ॥टेक॥
अंतरि गर्भ सह्यौ दुष भारी । आवत जात परयौ मै हारी ॥१॥
भणत नांमदेव हरिगुण गाऊं । बहुरि न भवजल नीरौं आऊं ॥२॥
८३
राम गोविंद कमोदनि चंदा । छिन छिन पांन करै मकरंदा ॥टेक॥
जैसे कमल में कुसमलताई । मधि गोपाल परसि फिरि आई ॥१॥
अष्ट कंवल दल नांमदेव गावै । चरन कंवल रज काहे न पावै ॥२॥
८४
जपि रांमनांम महामंत्र । रांम बिना नहीं मुकति अनंत्र ॥टेक॥
महादेव उपदेसी गौरी । राम नांम जपि रसनां बौरी ॥१॥
जो पद नारद ध्रूं कूं सिषावा । सुरनि सुमृति संतनि सुष पावा ॥२॥
जन नांमदेव रांम नांम जपैला । चौरासि विष ऊतरि जैला ॥३॥
८५
गुड मीठा राम गुड मीठा । जिनि लह्या तिनि गुन दीठा ॥टेक॥
नैननि पाया श्रवननि षाया । तृपित भई त्रिस्ना मधि माया ॥१॥
पांचं ऊष षनि ग्यान गंडासी । कोल्हू ध्यान धरौ तिह पासी ॥२॥
घट कूंडा जब होइ न दोषी । सहज अनल गुड सोनां होसी ॥३॥
गुरुत्वा सो गुडवाई साजा । सो गुड हुवा तिहूं पुर राजा ॥४॥
नांमदेव प्रणवै कस न मिठाई । जहां जतन सुमिरन बनि आई ॥५॥
राग रामगिरी
८६
लाधौ तौ लाधौ मैं राम नांम लाधौ । प्रेमै पाटै सुत्रै पोयौ, कंठि लै बांधौ ॥टेक॥
राम नाम ततसार । सुमरि सुमरि जन उतरे पार ॥१॥
रामं जननी राम पिता । राम बंधू भौ तारिता ॥२॥
भणत नांमदेव हरि गुण गाऊं । बहुरि न जोनी संकुट आऊं ॥३॥
८७
वाद छाडि रे भगता भाई । हरि सी तैं निधि पाई ।
राम तजि मेरो मन अनत न जाई ॥टेक॥
जप माला तागै पोई । सरीर अंतरि है सोई ।
वादि विमुष हरि बिनु दिन षोई ।
राम नाम जपि लोई । परम तत है सोई ।
तीनौ रे त्रिलोक व्यापै दूजौ नहिं कोई ॥१॥
सजीवन मूरी सोई नटारंभ संगि गाई ।
रामनाम बिन नाहीं आन उपाई ।
नामदेव उतर्यौ पार । चेतहु रे चेतन हार ।
हरि की भगति बिन औतरोगे बारंबार ॥२॥
८८
हरि लै हरि लै हरि लै हरि ।
अपनी भगति रांम करि लै षरी ॥टेक॥
तुमसा ठाकुर कीजै । काहे न प्रतीति लीजै ।
अपनी बापौती कारणि प्राण दीजै ॥१॥
तुमची प्रतीति आई । दुरमति तजिले भाई ।
सुत कूं जननी कैसे विष पाई ॥२॥
बालक जे रुदन करे । मझ्या जैसे प्रांन धरे ।
पारब्रह्म पिता नांमा लाड लडै ॥३॥
८९
छांडि छांडि रे मुगुध नर कपट न कीजै ।
गोविंद नाराइन नांम मुषां लीजै ॥टेक॥
कोटि जौ तीरथ करि । तन जो हिवालै गलै ।
पृथ्वी जे सकल परदछिन दीजै । करवत कासी मैं लीजै ।
सिव कू जो सीस दीजै । रामनाम सरि तऊ न तूलै ॥१॥
बानारसी तपि करै पलटि तीरथ फिरै ।
काया जे अगिनी मुष कलेस कीजै । हिरन गर्भ दान दीजै ।
अस्वमेध जग्य कीजै । रामनाम सरि तऊ न तुलै ॥२॥
मान जै सरोवर जइये । गया जौ कुरषेत्र न्हइये ।
गोमती सनान गऊ कोटि कीजै । कुंभ जौ केदार जइये ।
सिंघहस्त गोदावरी न्हइऐ । रांम नांम सरि तऊ न तूलै ॥३॥
अस्वदान गजदान भोमिदान कन्यादान ।
गृहदान सज्या दांन दांन दीजे ।
तन तुला तोलि दीजै । मन जौ नृमल कीजै ।
रामनांम समि तऊ न तुलै ॥४॥
जमहिं न दीजै दोस मनहिं न कीजै रोस ।
निरषि नृवाण पद रामनाम लीजै ।
आत्मा अंगि लगाइ । सेविलै सहज भाइ ।
भणत नामईयौ छीपौ अंमृत पीजै ॥५॥
९०
राम भगति बिन गति न तिरन की । कोटि उपाइ जु करही रे नर ।
जल सींचै करि प्रवालै । आंब बबूल न फलही रे नर ॥टेक॥
आपा थापि और कूं नींदै । गर्व मान के मारे ।
फिर पीछे पछिताउगे बौरे । रतन न मिलहिं उधारे रे नर ॥१॥
यहु ममिता अपनी जिनि जानौ । धन जोबन सुत दारा ।
बालू के मंदिर बिनसि जांहिगे । झूठे करहु पसारा रे नर ॥२॥
जोग न भोग मोह नहीं माया । का भयौ बन मैं बासा ।
चरनं कंवल अनुराग न उपजै । तब लगि झूठी आसा रे नर ॥३॥
मनिषा जनम आई नहिं चेता । अंधे पसू गंवारा ।
तेरे सिर काल सदा सर साधै । नांमदेव करत पुकारा रे नर ॥४॥
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Last Updated : January 02, 2015
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