हिन्दी पदावली - पद १५१ से १६०
संत नामदेवजी मराठी संत होते हुए भी, उन्होंने हिन्दी भाषामें सरल अभंग रचना की ।
१५१
पाड पडोसणि, पूछिले नामा, कापहि छानि छवाई हो ॥
तोपहि दुगनी मजूरी देहउ मोकउ बेढी देहु बताई हो ॥
री बाई वेढा देनु न जाई ॥
देखु बेढी रहिउ समाई ॥
हमारै बेढी प्रान अधारा ॥
बेढी प्रीति मजूरी मांगे जउ कोऊ छानि छवावै हो ॥
लोग कुटुंब समहु ते तेरै तउ आपन बेढी आवै हो ॥
ऐसो बेढ बरनि न साकउ सभ अंतर सभ ठाईं हो ॥
गूंगे महा अमृतरस चाखिआ पूछे कहनु न जाई हो ॥
बेढा के गुन सुनि री बाई जलधि बांधि ध्रु थापिउ हो ॥
नामेके सुआमी सीअ बहोरी लंक भभीखण आपिउ हो ॥
१५२
अणमडिआ मंदलु बाजै । बिनु सावन धनहरु गाजै ॥
बादल बिनु बरखा होई । जउ ततु बिचारै कोई ॥
मोकउ मिलिउ रामु सनेही । जिह मिलिऐ देह सुदेही ॥
मिलि पारस कंचनु होइआ । मुख मनसा रतनु परोइआ ॥
निज भाऊ भइया भ्रमु भागा । गुरु पूछे मनु पति आगा ॥
जल भीतरि कुंभ समानिआ । सभ रामु एकु करि जानिआ ॥
गुर चेले है मन मानिआ । जन नामै ततु पछानिआ ॥
१५३
पतितपावन माधऊ विरदु तेरा । धनि ते वै मुनिजन दिआइउ हरी प्रभु मेरा ॥
मेरे माथै लागीले धूरी गोविंद चरणन की । सुर नर मुनि जन तिनहु ते दूरी ॥
दीन का दइआलु माधो गरब परिहारी । चरण सरन नामा बलि तिहारी ॥
१५४
कुंभार के घर हांडी आछै राजा के घर सांडी गो ॥
बामन के घर रांडी आछै रांडी सांडी हांडी गो ॥
बाणी के घर हींगु आछै भेसर माथे सींगु गो ॥
देवल मधे लींगु आछै लींगु, सींगु, हींगु गो ॥
तेली के घर तेलु आछै जंगल मधें बेल गो ॥
माली के घर केल आछै केल, बेल, तेल गो ॥
संता मधे राम आछै गोकल मधे सिआम गो ॥
नामे मधे गोबिंदु आछै राम, सिआम गोबिंब गो ॥
१५५
मै अंधुले की टेक तेरा नामु खुदंकारा । मै गरीब मै मसकीन तेरा नामु है अधारा ॥
करीमा रहिमा अलाह तूं गनी । हाजार हजूरी दरि पेसि तूं मनी ॥
दरिआऊ तूं निहंद तूं बिसिआर तूं धनी । देहि लेहि एक तूं दिगर को नही ॥
तूं दाना तूं बीना मै बीचारु किया करी । नामेचे सुआमी बखसंद तूं हरी ॥
१५६
हले यारां हले यारां खुसि खबरी । बलि बलि जांऊ हऊं बलि बलि जाऊं ॥
नीकी तेरी बिगारी आले तेरा नाऊ । कुजा आमद कुदा रफती कुजा मेरवी ॥
द्वारिका नगरी रासि बुगोई । खूबु तेरी पगरी मीठे तेरे बोल ॥
द्वारिका नगरी काहे को मगोल । चंदी हजार आलम एक लखाणा ॥
हम चिनी पातिसाह सांवले बरना । असपति गजपति नरह नरिंद ॥
नामे के स्वामी मीर मुकुंद ॥
१५७
बानारसी तपु करै उलटि तीरथ मरै । अगनि दहै काइआ कलपु कीजै ॥
असुमेध जगु कीजै सोना गरभदानु दीजै । रामनाम सरि तऊ न पूजै ॥
छोडि छोडि रे पाखंडा मन कपटु न कीजै । हरिका नामु नित नितहि लीजै ॥
गंगा जऊ गोदावरि जाइये । कुंभि जऊ केदार नाईये, गोमति सहसगऊ दानु कीजै ॥
कोटि जऊ तीरथ करै तनु जऊ हिवाले गारै । रामनाम सरि तऊ न पूजै ॥
असुदान गजदान सिहजा नारी । भूमिदान ऐसो दान नित नितहि कीजै ॥
आतम जऊ निरमाइलु कीजै । आप बराबरि कंचनु दीजै रामनाम सरि तऊ न पूजै ॥
मनहि न कीजै रोसु जमहि न दीजै दोसु । निरमल निरबाणु पदु चीनि लीजै ॥
जसरथ राइ नंदु राजा मेरा रामचंदु । प्रणवै नामा ततु रसु अंमृत पीजै ॥
१५८
मेरो बापु माधऊं तूं धनु केसो सावलीऊ विठुलाई ॥
कर धरे चक्र वैकुंठ ते आए गज हसती के प्रान उधारीअले ॥
दुहसासन की सभा द्रोपती अंबर लेत उबारिअले ॥
गौतम नारि अहालिया तारी या जन केतक तारिअले ॥
ऐसा अधमु अजाति नामदेऊ तऊ सरनागति आइअले ॥
१५९
बदहु कोन माधऊ मोसिऊ ।
ठाकुर ते जनु जन ते ठाकुरु खेलु परिउ है तोसिऊ ॥
आपन देऊ देहुरा आपन आप लगावै पूजा ।
जल ते तरंग तरंग ते है जल कहन सुनन कऊ दूजा ॥
आपहि गावै आपहि नाचै आप बचावै तूरा ॥
कहत नामदेऊ तूं ठाकुर जनु ऊरा तू पूरा ॥
१६०
आदि जुगादि जुगो जुगु ताका अंत न जानिआ ।
सरब निरंतरि रामु रहिआ रवि ऐसा रुपु बखानिआ ॥
गोबिंदु गाजै सबदु बाजै आनदरुपी मेरो रामइआ ।
बावन बीखू बाने बीखे बासु ते सुख लागिला ॥
तुमचे पारसु हमचे लोहा संग कंचनु भैइला ।
तू दइआलु रतनु लालु नामा साचि समाइला ॥
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Last Updated : January 02, 2015
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