हिन्दी पदावली - पद १९१ से २००
संत नामदेवजी मराठी संत होते हुए भी, उन्होंने हिन्दी भाषामें सरल अभंग रचना की ।
१९१
नामा तुं हि झूठा रे । तेरा पंथ झूठा रे ।
अल्लाहि अलम का साईं । सोहि गुप्त चहरा रै ॥१॥
मुसलमीन तो हंबी जाणी । नहीं राम कु तोली ।
पांच बखत निमाजु गुजारी । मस्जित क्यूं नहीं बोली ॥२॥
वाच्छाव तू ही तू दीवाना रे । तेरा तू हिं दीवाना रे ।
गाई की तो हंबी जाणी । खेती वीराणा खाती ।
एक पाव तो छीन लिया है । तीन पाव पर चल जाती ॥३॥
नामा तू हि बकरी काटी । मृगी काटी हलाल कीया कहता है ।
मुरगी में सो अंडा निकला । हलाल कैसा होता है ॥४॥
वाच्छाव बाबा आदम हंबा जाणें । ढबला नंदी आवे ।
सीरा लसेट का बेटा मारे । हराम खाना खावे ॥५॥ नामा तू हि झूठा रे ।
उन ने मारी उन ने तारा । उनने किया उत्धारा ।
मुवा पोगंडा आब जीवावै । ऐसा राम हमारा पाच्छा ॥६॥
दशरथ को दोनो बेटे, राम लछीमन भाई ।
डेरा छांड कर जंगल जावे । जोरु अपनी गमाई ॥७॥
नामा तू हि जल ऊपर, फत्तर तारी, आहिल्या नारि उत्धारी ।
रावण मारा विभिषण थापा लंका बक्से झौरी ॥८॥ पात्छा तूं ॥
गोऊ बछरा दोनऊं काटे नामा आगे डारे ।
नामदेव ने हाथ लगाया, बछरा पीवन लागे ॥९॥
अबतो भली बनी है जी, सबका धनी रामधनी है जी ।
नामा वाच्याव सहज मिलै, सांचा झगडा उनका ॥
ऊंचानीचा कर कर देख्यो, सोही ऊंचानीचा ॥१०॥
केवल घुमान प्रति में प्राप्त होनेवाले पद
१९२
माधौ कैसे कीजै जोग ।
करत जोग बहुत कठिनाई तजि न सकौं या भोग ॥टेक॥
नहीं मेरे रहणीं नहीं मेरे करणीं, बंध्यौ पंच बसि पोष ॥१॥
नहीं मेरे ग्यान नहीं मेरे ध्यांना, व्यापै हरि षरसोक ॥२॥
मैं अनाथ सुकृत हीनौं, तुम्हथै पर्यौ बियोग ॥३॥
भणत नामदेव हरि सरणिं राषियौ, नहीं तौ हंसि हैं लोग ॥४॥
१९३
ताहि गावै दास नामा । संत जननि के पुरवै कामा ॥टेक॥
असपति नामदेव तमकि बुलाइया । बेगि पलींग ले आव रे ।
सवरि सपेती गलौ गीदवा । दर हालै लै आवरे ॥१॥
अंबरीक प्रहिलाद परीछत । जस गावै प्रभु तेरा ।
सुंदर स्वामि कमल दल लोचन । प्राण जीवन धर मोरा ॥२॥
अपनै पन कौ दीन दानं । दोऊ सनक जनावै ।
भगत जनन कौं ज्यों दामोदर । पुनरपि जनमि न आवै ॥३॥
त्रिभुवन धणी सकल परिपूरण । जस भरि नामदेव गावै ।
सूकी सेज जलहिं थै निकसी । ले दीवानि पहुंचावै ॥४॥
१९४
सुणि भई महिमा नाम तणीं । मारहा सतगुर पासै जौ मैं सुणीं ॥टेक॥
कोटि कोटि बार जो पढिये । सकल सास्त्र कौ लीजै भेद ।
पुरांण अठारह कौ त जोइ । रांमनाम समि तुलै न कोइ ॥१॥
कोटि कोटि कूप षणावै बाइ । कोटि कोटि कन्यां दे प्रणाइ ।
कोटि कोटि बार दीजै जागि । तुलै न राम सहस्त्र मैं भागि ॥२॥
बिस्व सगली जौ दीजै दानं । कोटि कोटि तीरथ कीजै अस्नांन ।
कोटि कोटि जप तप संधियान । तऊ न आवै नांम समान ॥३॥
गन गनिका गोतम बधु नारी । नृमल नांम एहौ छौ हरी ।
पतित अजामेल सरणै गयौ । भाव कुभाव जिनि हरि नाम लयौ ॥४॥
मुष नारद प्रहिलाद अभ्यास । सुमरयौ ध्रू सतिकरि विस्वास ।
तिनके हरि काटे भवफंद । ते इम चलै रब चंद ॥५॥
हिरदै सति करि सुमरयौ राम । आन धरम भब तजि बेकाम ।
भणत नामदेव हरि सरणां । आवा भेटि मरणां ॥६॥
१९५
जाबा न देख्यूं हो नर हरी ।मो नृधन कौ धन नरहरी ॥टेक॥
आगल थयौ अगोचर थाइसि । मारहारि दयाथकौं हो नरहरि ॥१॥
तीन लोक मैं कहीं न समाणौं । संतनि हिरदै समौं हो नरहरी ॥२॥
नामदेव कहै मैं सेवग तेरा । आवा गवण निवारि हो नर हरी ॥३॥
१९६
पायौ मैं राम संजीवनि मूरी । गुर मिल्यौ बैद बिथा गई दूरी ॥
पढि पुरांन पंडित बौराना । भ्रम क्रम संसार भुलानां ॥१॥
आन देव सब भ्रमकी पूजा । देह घरे कौ धरम न दूजा ॥२॥
फुनि मुनि वरनि धर्म मति चोषी । पीवत नांमदेव भये संतोषी ॥३॥
१९७
मलै न लाछै पारमलो परमलीउ बठोरी बाई ॥
आवत किनै न पेखिउ कवनै जानै री बाई ॥
कउणु कहै किणि बूझिऐ रमईआ आकुल री बाई ॥
जिंउ आकासै पंखिअसे खोज निरखिउ न जाई ॥
जिंउ जल माझै माछलो मारगु पेखणे न जाई ॥
जिंउ आकासै घडुअलो मृग तृसना भरिआ ॥
नामेचे सुआमी बीठलो, जिनि तीनै जरिआ ॥
१९८
जब देखा तब गावा । तउ जन धीरजु पावा ॥
नादि समाइलो रे सतिगुर भेटिले देवा ॥
जह झिलिमिलि कारु दिसंता ॥
तह अनहद सबद बजंता ॥
जोति जोति समानी । मै गुरपरसादी जानी ॥
रतनकमल कोठरी । चमकार बिजुल तही ॥
नैरै नाही दूरि । निज आतमै रहिआ भरपूरि ॥
जह अनहत सूर उजारा । तह दीपक जलै छंछारा ॥
गुर परसादी जानिआ । जतु नामा सहज समानिआ ॥
१९९
दस बैरागनि मोहि बसि कीनी पंचहु का मिटनावऊ ॥
सतरि दोई भरे अम्रितसरी बिखु कऊ मारि कढावऊ ॥
पाछै बहुरि न आवनु पावऊ ॥
अंम्रितबाणी घट ते ऊचरऊ आतमकऊ समझावऊ ॥
बजर कुठारु मोहि है छीना करि मिनती लगि पावऊ ॥
संतनकु हम उलटे सेवक भगतन ते डर पावऊ ॥
इह संसार ते तबही छूटऊ जऊ माइआ नह लपटावऊ ॥
माइआ नामु गरभ जोनिका तिह तजि हरसनु पावऊ ॥
इतुकरि भगति करहि जो जन तिन भऊ सगल चुकाइये ॥
कहत नामदेऊ बाहरि किआ भरमहु इह संजम हरि पाइये ॥
२००
मारवाडि जैसे नीरु बालहा बेलि बालहा करहला ॥
जिउ कुरंक निसिनादु बालहा तिउ मेरै मनि रामईआ ॥
तेरा नामु रुडो, रुपु रुडो, अंतिरंग रुडो मेरो रामईआ ॥
जिउ धरणी कऊ इंद्र बालहा कुसम बासु जैसे भवरला ॥
जिऊ कोकिल कऊ अंबु बालहा तिऊ मेरै मनीं रामईआ ॥
चकवी कऊ जैसे सुरु बालहा मानसरोवर-हंसुला ॥
जिऊं तरुणी कऊ कंतु बालहा तिऊ मेरे मनीं रामईआ ॥
बारिक कऊ जैसे खीरु बालहा चात्रिक मुख जैसे जलधरा ॥
मछुली कऊ जैसे नीरु बालहा तिऊ मेरे मनीं रामईआ ॥
साधिक-सिद्ध सगल मुनि चाहहि बिरलो काहू डीठुला ॥
सगल भवन तेरे नामु बालहा तिऊ नामे मनि बीठला ॥
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Last Updated : January 02, 2015
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