कामादि दोषों के नाश के लिए हमने यहाँ तक उत्तम योग का ज्ञान ( प्राणायाम प्रत्याहार , धारणा , ध्यान व समाधि ) कहा । अब मन्त्र के योगार्थ निर्णय को सुनिए । हे प्रभोः ! पञ्चभूतों का अश्रयभूत यह सारा शरीर क्लेश से व्याप्त है । इसमें चन्द्रमा , सूर्य एवं अग्नि के तेज से ब्रह्म का अंशभूत जीव निवास करता है ॥४७ - ४८॥
इस शरीर में साढ़े तीन करोड़ नाड़ियाँ हैं । उसमें भी दश मुख्य है । उन दशों में भी तीन व्यवस्थित हैं । ये तीन नाड़ियाँ मेरुदण्ड में रहने वाली सोम , सूर्य तथा अग्नि स्वरुपा हैं । इन तीन नाड़ियों के रुप में इस शरीर में योगमाता प्रतिष्ठित हैं ॥४९ - ५०॥
मेरुदण्ड के वामभाग में चन्द्ररुपा शुक्लवर्णा इड़ी है जो साक्षात् शक्ति का स्वरुप एवं अमृतमय शरीर वाली है । मेरु के दक्षिण भाग में पिङ्गला नाम की नाड़ी , पुरुष रुप में सूर्य विग्रह स्वरुप से स्थित है , जो अनार के पुष्प के समान लालवर्ण वाली है । इसे विष भी कहा जाता है ॥५१ - ५२॥
मेरु के मध्य में जो स्थित है , उसका नाम सुषुम्ना है जो बहुरुपिणी है और विसर्ग से बिन्दु पर्यन्त तत्त्वतः व्याप्य हो कर स्थित है । इच्छा , ज्ञान तथा क्रिया को उत्प्ना करने वाले त्रिकोणात्मक मूलाधार के मध्य में करोड़ों सूर्य के समान तेजस्वी स्वयम्भू लिङ्ग स्थित हैं ॥५३ - ५४॥
उसके ऊपर कला , शान्ति तथा इन्दु रुप में सर्वश्रेष्ठ कामबीज का निवास है । उसके ऊपर शिखा के आकार वाली ब्रह्मस्वरुपा कुण्डलिनी रह्ती है । उसके बाहर वाले भाग में सुवर्ण के समान आभा वाला ’ व श ष स ’ - इन चार वर्णों से युक्त चार पत्तों वाला द्रवीभूत सुर्वण के समान कमल है उसका ध्यान करना चाहिए ॥५५ - ५६॥
स्वाधिष्ठान के स्वशब्द से कहा जाने वाला सर्वश्रेष्ठ स्वाधिष्ठान नामक लिङ्ग ही स्व शब्दा का अर्थ है । उसके ऊपर नाभि देश में महाकान्तिमान् मणिपूर नामक चक्र है । मेघ की आभा वाला तथा विद्युत् की आभा वाला अनेक वर्ण के तेजों वाली मणियों से युक्त वह मणिपूर नामक पद्म चन्द्रमा के समान कान्तिमान् है ॥५९ - ६०॥
वह पदम ’ ड ढ ण त थ द ध न प और फ ’ इन दश वर्णों वाले दश दलों से युक्त है । हे नाथ ! उसके विषय में सब कुछ कह दिया । अब ह्रदय पर विराजमान पदम चक्र के बारे में सुनिए । हे नाथ ! उस पदम पर शिव अधिष्ठित हैं , जो चारों ओर अपना प्रकाश विकीर्ण करते रहते हैं । वहाँ पर किरणों से युक्त अनाहत नाम का पद्म है ॥६१ - ६२॥
जो उदीयमान सूर्य के समान प्रकाश वाला तथा ’ क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट और ठ ’ इन द्वादश वर्णों से युक्त द्वादश पत्तों वाला है । उस पद्म के मध्य में हजारों सूर्य के समान आभा वाला बाणलिङ्ग है वह शब्द ब्रह्ममय है और अनाहत रुप में दिखाई पड़ता है ॥६३ - ६४॥