शिखा बन्धनम्
ॐ ब्रह्म वाक्य सहस्त्रेण शिव वाक्य शतेन च । विष्णोर्नाम सहस्त्रेण शिखा ग्रंथि करोम्यहम् ॥
( ततो वाम पादेन भूमि त्रिवारं ताडयेत )
दुष्टानां तु दमनं कृत्वा हतपापमाच्युत् । निर्गच्छन्तु विघ्नानां आगच्छन्तु अत्र देवता ॥
तात्रिकें :-
अपने चारों ओर चुटकी बजाते हुए रक्षा करें ।
ॐ रं अग्निप्राकाराय नमः , ॐ सहस्त्रार हुँ फट् , सुदर्शन प्राकाराय नमः , ॐ श्लीं पशुं हुँ फट् , पाशुपत प्रकाराय नम : ॥
दोनों हाथ जोडकरः -
वामें गुं गुरुभ्यो नमः , दक्षिणे भद्रकाल्यैनम : उपरे गं गणपतये नमः हृदये श्री महादुर्गायै नमः ।
बायें हाथ में फूल लेकर उन्हें मींजकर सूघें और -
ॐ तेसर्वे विलयं यान्तु ये मा हिंसन्ति हिंसकाः । मृत्यु रोग भय क्लेशा : पतन्तु रिपु मस्तके ॥
( यह मंत्र पढकर इसे ईशान कोण में फेंक दें )
९६ बार ॐ या व्याहृति से पूरक ६४ बार जप से कुंभक तता ३२ बार जप से रेचक करें । अथवा मूल मंत्र का जाप १ - ४ , २ के अनुपात में करें ।
॥ भूत शुद्धि ॥
अपनी बाईं कोख में पाप पुरुष का ध्यान करें ।
वाम कुक्षि स्थितं कृष्णामंगुष्ठ परिमाणकं । विप्रहत्या शिरोयुक्तं कनक स्तेय - बाहुकम् ॥१॥
मदिना पान हृदयं गुरु तल्प कटीयुतम् । तत्संयोगि पद द्वन्द्वमुप पातक रोमकम् । खड्ग चर्म धरं दुष्टमधोवक्रम च दुःसहम् ॥२॥
इसके बाद " यं " बीज मंत्र १६ बार जपता हुआ बायीं नासिका से वायु के साथ भगवती के तेज का स्मरण कर पूरक करें ।
फिर कुंभक करें " रं " का ६४ बार जाप करें और समझें इससे पाप पुरुष भस्म हो गया है " यं " मंत्र ३२ बार जपता हुआ रोचक करें । यह समझें कि पाप पुरुष की भस्मी बाहर चली गई है ।
अथवा ॐ हौं इस मंत्र का १०८ बार जाप करें ।