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दीपमालिका ( दीपक ) पूजनम्

पूजा विधी - दीपमालिका ( दीपक ) पूजनम्

जो मनुष्य प्राणी श्रद्धा भक्तिसे जीवनके अंतपर्यंत प्रतिदिन स्नान , पूजा , संध्या , देवपूजन आदि नित्यकर्म करता है वह निःसंदेह स्वर्गलोक प्राप्त करता है ।


दीपमालिका ( दीपक ) पूजनम्

बीच में बडा दीपक और उसके चारों ओर ग्यारह - इक्कीस अथवा इससे भी अधिक दीपक अपनी पारिवारिक परम्परा के अनुसार तिल के तेल से प्रज्ज्वलित करके एक परात में रखकर आगे लिखे मन्त्र से ध्यान करें ।

ध्यानम्

भो दीप ब्रह्मरूप त्वं अन्धकारविनाशक ।

इमां मया कृतां पूजां गृह्वन्तेज : प्रवर्धय ॥

इस प्रकार ध्यान करके पुष्पादि छोडें ।

पंचोपचार पूजन करने के पश्चात हाथ जोडकर निम्न प्रार्थना करें ।

प्रार्थना

शुभं करोतु कल्याणमारोग्यं सुख - सम्पदम् ।

मम बुद्धि - प्रकाशं च दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते ॥१॥

शुभं भवतु कल्याणमारोग्यं पुष्टिवर्धनम् ।

आत्मतत्वप्रबोधाय दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते ॥२॥

दीपावलिर्मया दत्त गृहाण त्वं सुरेश्वरि ।

अनेन दीपदानेन ज्ञानदृष्टिप्रदा भव ॥

आरार्तिक्यम्

कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् ।

सदा वसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानी सहितं नमामि ॥

अग्निर्ज्योतीरविज्योतिश्चन्द्रज्योतिस्तथैव च ।

उत्तमं सर्वज्योतीनाम् आर्तिक्यं प्रतिगृह्यताम् ॥

आरती

जय लक्ष्मी माता मैया जय लक्ष्मी माता ।

तुमको निश दिन ध्यावत हर विष्णु धाता ।

ब्रह्माणी रुद्राणी कमला तूही है जगमाता ।

सूर्य चन्द्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता ॥ जय०॥

दुर्गारूप निरञ्जनि सुख सम्पति दाता ।

जो कोई तुमको ध्यावत ऋद्धिसिद्धि धनपाता ॥ जय०॥

तू ही है पातालवसन्ती तूही है शुभदाता ।

कर्म प्रभाव प्रकाशक भवनिधि से त्राता ॥ जय०॥

जिस घर थारो वासो वाही में गुण आता ।

कर न सकै सो कर ले मन नहीं धडकाता ॥ जय०॥

तुम बिन यज्ञ न होवे वस्त्र न हो राता ।

खान पानको वैभव तुम बिन कुण दाता ॥ जय०॥

शुभ गुण सुन्दरयुक्ता क्षीरनिधिजाता ।

रत्नचतुर्दश तोकूँ कोई भी नहीं पाता ॥ जय०॥

या आरती लक्ष्मीजी की जो कोई नर गाता ।

उर आनन्द अति उमगे पाप उतर जाता ॥ जय०॥

स्थिर चर जगत बचावे कर्म फेर ल्याता ॥ जय०॥

राम प्रताप मैया की शुभ दृष्टि पाता ॥ जय०॥

पुष्पाञ्जलि

ॐ महालक्षम्यैं च विद्महे विष्णुप्रियायै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी : प्रचोदयात् । या श्री : स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मी : पापात्मनां कृतधियाँ हृदयेषु बुद्धि : । श्रद्धा सतां
कुलजनप्रभवस्य लज्जा , तां त्वां नता : स्म : परिपालय देवि विश्वम् ॥

 

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Last Updated : May 24, 2018

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