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पित्रीश्वर पूजनम्

पूजा विधी - पित्रीश्वर पूजनम्

जो मनुष्य प्राणी श्रद्धा भक्तिसे जीवनके अंतपर्यंत प्रतिदिन स्नान , पूजा , संध्या , देवपूजन आदि नित्यकर्म करता है वह निःसंदेह स्वर्गलोक प्राप्त करता है ।


॥ पित्रीश्वर पूजनम् ॥

प्राय : आजकल सभी पूजाओं में पित्रीश्वरों का मण्डल एवं चित्र स्थापित किया जाता है । और नान्दी श्राद्ध ( शान्ति , यज्ञ एवं आशोच प्राप्ति की आशंका ) के अभाव में पितरों का स्मरण एवं पूजन मात्र किया जाता है । अतः विद्वजन आचार्य , यजमान से पितरों का तर्पण , अर्चन करायें ।

यजमान इस मंत्र से अपने शरीर एवं पूजा सामग्री को जल से पवित्र करें ।

ॐ अपवित्र : पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।

य : स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर : शुचि : ॥

ॐ पुनन्तु मादेवजना : पुनन्तु मनसाधिय : ।

पुनन्तु व्विश्वाभूतानि जातवेद : पुनीहिमा ॥

पवित्रीकरण के पश्चात् जलगन्धाक्षत हाथ में लेकर संकल्प करें ।

ॐ तत्सद्यामुक गोत्राणां सपत्नीकानां पित्रीश्वराणां अस्मिन् ..... कर्मणि यथा लब्धोपचारै : अमुक शर्मा / गुप्ता ( नामोच्चारण करें ) पूजन महं करिष्ये ।

आवाहनम्

ॐ पितृभ्य : स्वधायिभ्य : स्वधा नमः पितामहेभ्य : स्वधायिभ्य : स्वधा नमः । प्रपिता महेभ्य : स्वधायिभ्य : स्वधानमः ।

अक्षन्नपितरोंऽमीमदन्त पितरोऽतीतृपन्त पितर : पितर : शुन्धध्वम् ॥

अक्षत - पुष्प पितृ मण्डल पर समर्पित कर आसन , पाध , अर्ध्य , आचमनीय , स्नान , वस्त्रोपवस्त्र , यज्ञोपवीत , गंध , चन्दनादि , षोडशोपचार से मंत्रोच्चार पूर्वक अर्चन करें ।

अर्चन के पश्चात् अञ्जली में अक्षत , पुष्प लेकर निम्नानुसार पुष्पांजली समर्पित करें ।

स्वर्ग स्थिता ये पितरस्तु दिव्या :, श्रेष्ठे : सुभावै : परिपूजितास्ते ।

आयुष्यमारोग्य मभिप्रदाय , गृह्वन्तु पुष्पाञ्जलिमत्र नित्यम् ॥

पुष्पाञ्जली के पश्चात् हाथ जोडकर यजमान प्रार्थना करें ।

ॐ गोत्रं नो वर्धताम् दातारो नोऽभिवर्धन्ताम् वेदा : सन्ततिखे च ।

श्रद्धा च नो माव्यगमद् बहुदेयञ्च नोऽस्तु अन्नं च नो बहुभवेत् अतिथींश्च लभे महि । याचितारश्च न : सन्तु मा च याचिस्म कञ्चन । एता : सत्याशिष : सन्तु ।

यह प्रार्थना कर अर्घ्य प्रदान करें ।

आचार्यादि ब्राह्मण बोले - सन्त्वेता : सत्याशिष : ।

अनेनार्चनेन दिव्य पितर : प्रियन्ताम् ( जल छोडें )

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Last Updated : May 24, 2018

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