हिंदी सूची|पूजा एवं विधी|पूजा विधी|प्रकार १|
आचार्यादि ऋत्विग्वरणम्

पूजा विधी - आचार्यादि ऋत्विग्वरणम्

जो मनुष्य प्राणी श्रद्धा भक्तिसे जीवनके अंतपर्यंत प्रतिदिन स्नान , पूजा , संध्या , देवपूजन आदि नित्यकर्म करता है वह निःसंदेह स्वर्गलोक प्राप्त करता है ।


अथ आचार्यादि ऋत्विग्वरणम्

पत्नी सहित यजमान ब्राह्मणों को नमस्कार कर , अर्घ्य व आसन देकर उनका स्वागत करें । तत्पश्चात् सर्वप्रथम आचार्य के दक्षिण के पैर के अंगूठे का प्रक्षालन ( दुग्ध मिश्रित जल से ) कर चन्दन , पुष्पादि चढावें ।

ब्राह्मणों के पाँव धोने का मन्त्र

१ . यत्पुण्यं कपिलादाने कार्तिक्यां ज्येष्ठपुष्करे । तत्फलं पाण्डव श्रेष्ठ । विप्राणां पाद शौचने ॥

२ . पृथिव्यां यानि तीर्थानि तानि तीर्थानि सागरे । सागरे सर्वतीर्थानि , विप्रस्य दक्षिण पदे ॥

आचार्य को पुष्पाहार , वस्त्र , यथाशक्ति दान दक्षिणा दें । तत्पश्चात् सभी ब्राह्मणों का इसी क्रम से पूजन करें । एवं अक्षत् , पुष्पहार देते हुए चन्दन से तिलक करें ।

ब्राह्मणों के तिलक करने का मन्त्र

ॐ नमोऽस्त्वनंताय सहस्त्र मूर्तये , सहस्त्र पादक्षिशिरोरूबाहवे । सहस्त्र नाम्ने पुरुषाय शाश्वते , सहस्त्र कोटि युग धारिणे नमः ॥

नमो ब्रह्मण्य देवाय गोब्राह्मणहिताय च । जगद्धिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमो नमः ॥

इसके पश्चात् पवित्र रक्त सूत्र से ब्राह्मणों का अभिष्ट कर्म के लिए व्रत बन्धन करें ।

ब्राह्मणों को मोली बाँधने का मन्त्र

ब्रतेन दीक्षामाप्नोति दीक्षयाप्नोति दक्षिणाम् । दक्षिणा श्रद्धामाप्नोति श्रद्धया सत्यमाप्यते ॥

यदाबध्नन्दा क्षायणा हिरण्य र्ठ शतानीकाय सुमनस्य माना : । तन्मऽआबध्नामि शत शारदाय - युष्माञ्जरदष्टि र्यथासम् ॥

जयमान के तिलक करने का मन्त्र

शतमानं भवति शतायुर्वे पुरुष : । शतेन्द्रियं आयुर्वलेनेद्नियं वीर्यमात्मन् धत्ते ॥

ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा : स्वस्ति न : पूषा विश्ववेदा : । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्ट नेमि : स्वस्ति नो बृहस्पति र्दधातु ।

यजमान के मौली बाँधने का मन्त्र

येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल : । तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल : ॥१॥

ॐ त्वयं तिष्ठ दाशुषे नृपाहि श्रुणुधीगिर : रक्षोतोकमुतन्मना ॥२॥

दाक्षायणा शतानी कम बाध्नन्सुहिरण्यकम् । आबध्नामि तदेवाह मायुष्य स्यामि वृद्धये ॥३॥

यजमान पत्नी के मौली बाँधने का मन्त्र

गृह यज्ञ फलावाप्त्यै कङ्कणं सूत्रनिर्मितम् । हस्ते बध्नामि सुभगे त्वं जीव शरदां शतम् ॥१॥

ॐ तम्पत्वनी भिर नुगच्छेम देवा : पुत्रैर्भातृ भिरुत वाहिरण्यै : । नाकङ्गृब्भणाना : सुकृतस्य लोके तृतीये पृष्ठे ऽअधिरोचने दिव : ॥२॥

N/A

References : N/A
Last Updated : May 24, 2018

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP