आरोग्यव्रत
( विष्णुधर्मोत्तर ) - पौष शुक्ल द्वितीयाको गोश्रृङ्गोदक ( गायोंके सीगोंको धोकर लिये हुए जल ) से स्त्रान करके सफेद वस्त्र धारणकर सूर्यास्तके बाद बालेन्दु ( द्वितीयाके चन्द्रमा ) का गन्धादिसे पूजन करे । जबतक चन्द्रमा अस्त न हो, तबतक गुड़, दही, परमान्न ( खीर ) और लवणसे ब्राह्मणोंको संतुष्ट करके केवल गोरस ( छाछ ) पीकर जमीनपर शयन करे । इस प्रकार प्रत्येक शुक्ल द्वितीयाको एक वर्षतक चन्द्रपूजन और भोजनादि करके बारहवें महीने ( मार्गशीर्ष ) में बालेन्दुका यथापूर्व पूजन करे और इक्षुरस ( ईखके रस ) का घड़ा, सोना और वस्त्र ब्राह्मणको देकर भोजन करे तो रोगोंकी निवृत्ति और आरोग्यताकी प्रवृत्ति होती है तथा सब प्रकारके सुख मिलते हैं ।