ईशानव्रत
( कालिकापुराण ) - पौष शुक्ल चतुर्दशीका व्रत करके पुष्ययुक्त पूर्णमासीको सुश्वेत वस्त्रसे आच्छादित की हुई वेदीपर चारों दिशाओंमें अक्षतोंकी चार ढेरियाँ बनाये । एक वैसी ही मध्यमें बनाये । उनपर पूर्वमें विष्णु ', दक्षिणमें ' सूर्य ', पश्चिममें ' ब्रह्मा ' और उत्तरमें ' रुद्र ' को स्थापित करे तथा सबके मध्यमें ' ईशान ' की स्थापना करके उत्तम प्रकारके गन्ध - पुष्पादिसे पूजन कर और कर्पूरादिसे नीराजन ( आरती ) करके गोमिथुन ( एक गौ और एक बैल ) का दान करे । ब्राह्मणोंको भोजन कराये और स्वयं गोमूत्र पीकर उपवास करे । इस प्रकार पाँच वर्ष करनेसे यह व्रत पूर्ण होता है । गोदानमें यह विशेषता है कि पहले वर्षमें एक गौ, एक बैल; दूसरे वर्षमें दो गौ, एक बैल; तीसरेमें तीन गौ, एक बैल; चौथेमें चार गौ, एक बैल और पाँचवेंमें पाँच गौ और एक बैल दान करे । बैल ब्रह्मचारी या साँड हो - खेती आदिमें जोता हुआ न हो तो इस व्रतके करनेसे सब प्रकारका सुख होता है और लक्ष्मी बढ़ती है ।