शुक्लैकादशी
( ब्रह्मवैवर्त ) - पौष शुक्ल एकादशी ' पुत्रदा ' है । इ के उपवाससे पुत्रकी प्राप्ति होती है । प्राचीन कालमें भद्रावती नगरीके राजा वसुकेतुके पुत्र न होनेसे राजा, रानी दोनों दुःखी थे । उनके मनमें यह विचार उठा कि ' पुत्रके बिना गज, तुरग, रथ, राज्य, नौकर - चाकर और सम्पत्ति - सब निरर्थक है; अतः पुत्रप्राप्तिका उपाय करना चाहिये । ' यह सोचकर राजा एक ऐसे गहन वनमें चला गया जिसमें बड़, पीपल, बेल, जामुन, केले, कदम्ब, टेंडू, लीची और आम आदि भरे हुए थे; जहाँ सिंह, व्याघ्र, वराह, शश, मृग, श्रृगाल और चार दाँतोंके हाथी आदि घूम रहे थे; शुक, सारिका, कबूतर, पपीहा और उल्लू आदि बोल रहे थे तथा साँप, बिच्छू, गोह और कीट - पतंगादि डरा रहे थे । ऐसे सुहावने और डरावने जंगलमें एक अत्यन्त सुन्दर, मनोहर और मधुरतम जलपूर्ण सरोवरके तटपर मुनिलोग सत्कर्मोंका अनुष्ठान कर रहे थे । उनको देखकर राजाने अपना अभीष्ट निवेदन किया । तब महात्माओंने बतलाया कि ' आज पुत्रदा एकादशी है, इसका उपवास करो तो पुत्र प्राप्त हो सकता है ।' राजाने वैसा ही किया और भगवत्कृपासे उसके यहाँ सर्वगुणसम्पन्न सुन्दर पुत्र उत्पन्न हुआ ।