अविघ्रकरव्रत
( वाराहपुराण ) - फाल्गुन शुक्ल चतुर्थीको सुवर्णके गणेशजीका गन्धादिसे पूजन करे, तिलोंके पदार्थका भोग लगाये, तिलोंका हवन करे, ताम्रादिके पाँच पात्रोंमें तिल भरकर ब्राह्मणोंको दे एवं उनको तिलोंके पदार्थका भोजन कराये तथा स्वयं भी तिलोंका भोजन और तिलोंसे ही पारण करे । इस प्रकार चार महीनेतक प्रत्येक शुक्ल चतुर्थीका व्रत करके पाँचवे महीने ( आषाढ़ ) में पूर्वोक्त पूजित मूर्ति ब्राह्मणको दे तो सब विघ्र दूर होते हैं । प्राचीन कालमें अश्वमेधके समय महाराज सगरने, त्रिपुरासुरयुद्धमें शिवजीने और समुद्रमन्थनमें विघ्र न होनेके लिये स्वयं भगवानने यही व्रत किया था ।