लक्ष्मीनारायणव्रत
( विष्णुधर्मोत्तर ) - फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमाको प्रातःकालसे सायंकालपर्यन्त सभी प्रकारके धूर्त, मूर्ख, पापी, पाखण्डी, परद्रव्यापिका अपहरण करनेवाले व्यभिचारी, दुर्व्यसनी, मिथ्याभाषी, अभक्त और विद्वेषी मनुष्योंसे वार्तालापतकका संसर्ग त्यागकर मौन रहे और मनमें भगवानका स्मरण करे और उनका प्रीतिपूर्वक प्रातःकालीन पूजन करके व्रत रखे । फिर सायंकालमें चन्द्रोदय होनेपर उसके बिम्बमें ईश्वर ( परमेश्वर ), सूर्य और लक्ष्मी - इनका चिन्तन करके पूजन करे और
' श्रीर्निशा चन्द्ररुपस्त्वं वासुदेव जगत्पते । मनोऽभिलषितं देव पूरयस्व नमो नमः ॥'
इस मन्त्नसे अर्घ्य दे और रात्रिमें तैलवर्जित एक बार भोजन करे । इस प्रकार फाल्गुनी, चैत्री, वैशाखी और ज्येष्ठीका व्रत करके ' पञ्चगव्य ' ( गौके दूध, दही, घी, गोबर और गोमूत्रको वस्त्रसे छानकर प्रमाणका ) पीये । आषाढ़ी, श्रावणी, भाद्री और आश्विनीका व्रत करके ' कुशोदक ' ( दिनभर जलमें भीगी हुई डाभका जल ) पीये और कार्तिकी, मार्गशीर्षी, पौषी और माघीका व्रत करके सूर्यकी किरणोंसे दिनभर तपे हुए जलको पीये । इस प्रकार वर्षपर्यन्त व्रत करके उसका विसर्जन करे तो सम्पूर्ण अभिलाषाएँ पूर्ण होती हैं ।