सर्वार्तिहरव्रत
( सनत्कुमारसंहिता ) - फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशीको प्रातःस्त्रानादि नित्यकर्मसे निवृत्त होकर
' मम सकलपापतापप्रशमनकामनया ईश्वरप्रीतये सर्वार्तिहरव्रतं करिष्ये ।' -
यह संकल्प करके काम, क्रोध, लोभ, मोह, अनाचार और मिथ्या - भाषणादि दोषोंका त्यागकर सूर्योदयसे सूर्यास्तपर्यन्त करबद्ध और विनम्र होकर सूर्यके सम्मुख अविचल खड़ा रहे । सूर्यास्तके समय पुनः स्त्रानकर भगवानका विधिवत् पूजन करके निराहार व्रत रखे और दूसरे दिन भोजन करे तो इस व्रतके करनेसे ज्वरसे उत्पन्न होनेवाले सब रोग, फोड़ा - फुन्सी, प्लीहा ( तिल्ली ) , सब प्रकारके शूल ( दर्द ) , सब प्रकारके कोढ़, अरुचि, अजीर्ण, जलाघात, अग्निमान्द्य और अतिसारादि प्रायः सभी रोग और भव - बाधादि सबी दुःख दूर होकर देवदुर्लभ सुख सुलभ हो जाते है ।
सूर्यके सम्मुख खड़ा रहनेके लिये कुछ दिन पहलेसे दो - दो, चार - चार घंटेतक खड़े रहनेका क्रमोत्तर अभ्यास करके फिर उक्त चतुर्दशीको दिनभर खड़ा रहे । सूर्यबिम्बको विशेष न देखे । नेत्रोंको नीचा रखे । यथासाध्य पृथ्वीको या तत्रस्थ फल - पुष्प और दूर्वा आदिको देखता रहे तो कष्ट नहीं होता । सूर्याभिमुख खड़ा रहे, उस दिन दिनके तीन भाग बनाये । फिर प्रातःकालीन पहले सवा पहरमें पूर्वाभिमुख, मध्याह्नकालीन दूसरे सवा पहरमें उत्तराभिमुख और सायंकालीन तीसरे सवा पहरमें पश्चिमाभिमुख रहे ।