नामरूप - ॥ समास पहला - आत्मानात्मविवेकनाम ॥
इस ग्रंथराज के गर्भ में अनेक आध्यात्मिक ग्रंथों के अंतर्गत सर्वांगीण निरूपण समाया हुआ है ।
॥ श्रीरामसमर्थ ॥
आत्मानात्मविवेक करें । करके अच्छे से विवरण करें । विवर कर सदृढ धरें । जीव में ॥१॥
आत्मा कौन अनात्मा कौन । इसका करें विवरण । वही अब निरूपण । सावधानी से सुनें ॥२॥
चारों खाणी चारों वाणी । चौरासी लक्ष जीव प्राणी । पुराणों में है संख्या गिनी । व्यवहार करते अब ॥३॥
नाना प्रकार के शरीर । सृष्टि में दिखते अपार । उनमें निर्धार । से आत्मा कौन ॥४॥
दृष्टि से देखता । श्रवणों से सुनता । रसना से स्वाद लेता । प्रत्यक्ष अब ॥५॥
घ्राण में गंध लेता । सर्वांग में वह स्पर्श करता । वाचा से कथन कराता । जानकर शब्द ॥६॥
सावधान और चंचल । चारों ओर गतीशील । अकेला ही चलाये सकल । इंद्रियों द्वारा ॥७॥
पैर चलाये हांथ हिलाये । भौहें नचाये आंखे झपकाये । संकेत चिन्हों से बुलाये । वही आत्मा ॥८॥
ढिठाई करे लजाये खुजाये । खांसे ओंके थूके । अन्न खाकर उदक पिये । वही आत्मा ॥९॥
मलमूत्र त्याग करे । शरीरमात्र संवारे । प्रवृत्ति निवृत्ति का विवरण करे । वही आत्मा ॥१०॥
सुने देखे सूंघे चखे । नाना प्रकार से पहचाने । संतोष पाये और धाक दिखाये । वही आत्मा ॥११॥
आनंद विनोद उद्वेग चिंता । काया छाया माया ममता । आत्मत्ववश पाये नाना व्यथा । वही आत्मा ॥१२॥
पदार्थ की आस्था धरे । जनों में भला बुरा करे । स्वयं को बचाकर परायों को मारे । वही आत्मा ॥१३॥
युद्ध समय दोनों ओर । नाना शरीरों में संचार । गिरे गिराये परस्पर । वही आत्मा ॥१४॥
वह आता जाता देह में बरतता । हंसता रोता पश्चाताप करता । समर्थ अभागी बनता । कारोबारानुसार ॥१५॥
होता चालाक होता बलिष्ठ । होता विद्यावंत होता ढीठ । न्यायवंत होता उद्धट । वही आत्मा ॥१६॥
धीर उदार और कृपण । पागल और विचक्षण । उच्छंक और सहिष्ण । वही आत्मा ॥१७॥
विद्या कुविद्या दोनों ओर । आनंदरूप से करे संचार । जहां वहां चारो ओर । वही आत्मा ॥१८॥
सोये उठे बैठे चले । दौड़े दौड़ाये डोले तोले । नाते रिश्ते बनाये । वही आत्मा ॥१९॥
पोथी पढ़े अर्थ कहे । ताल धरे गाने लगे । बिना कारण वादविवाद करे । वही आत्मा ॥२०॥
आत्मा न हो शरीर में । फिर वह शव चराचर में । आत्मा करे देह के संग में । सब कुछ ॥२१॥
एक के बिना दूसरा क्या । काम न आये व्यर्थ जाये । इस कारण यह उपाय । देहयोग से ॥२२॥
देह अनित्य आत्मा नित्य । यही विवेक नित्यानित्य । सकल सूक्ष्म का कृत्य । जानते ज्ञानी ॥२३॥
पिंड में देहधर्ता जीव । ब्रह्मांड में देहधर्ता शिव । ईश्वरतनुचतुष्टय सर्व । ईश्वर धर्ता ॥२४॥
त्रिगुणों से परे जो ईश्वर । अर्धनारीनटेश्वर । सकल सृष्टि का विस्तार । हुआ यहां से ॥२५॥
देखें विचार कर सही । स्त्री पुरुष वहां नहीं । चंचलरूप आता थोडा ही । प्रत्यय में ॥२६॥
मूल से लेकर अंततक । ब्रह्मादि पिपीलिका देहधारक । चतुर नित्यानित्यविवेक । जानिये ऐसा ॥२७॥
जड जितना अनित्य । और सूक्ष्म जितना नित्य । इनमें जो नित्यानित्य । आगे निरूपित किये ॥२८॥
स्थूल सूक्ष्म पार किया । कारण महाकारण त्याग दिया । विराट हिरण्यगर्भ खंडित किया । विवेक से ॥२९॥
अव्याकृत मूलप्रकृति । वहां जा बैठी वृत्ति । उस वृत्ति को कराने निवृत्ति । निरूपण सुनें ॥३०॥
आत्मानामविवेक कहा । चंचलात्मा प्रत्यय में आया । अगले समास में निरूपित किया । सारासारविचार ॥३१॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे आत्मानात्मविवेकनाम समास पहला ॥१॥
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Last Updated : December 08, 2023
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