नामरूप - ॥ समास चौथा - प्रलयनाम ॥
इस ग्रंथराज के गर्भ में अनेक आध्यात्मिक ग्रंथों के अंतर्गत सर्वांगीण निरूपण समाया हुआ है ।
॥ श्रीरामसमर्थ ॥
पृथ्वी का होगा अत । भूतो का होगा कल्पात । ऐस समाचार साद्यत । शास्त्रों में है निरूपित ॥१॥
शत वर्षों तक अनावृष्टि जिससे जले यह सृष्टि । पृष्ठ पर पर्वत मिट्टी । भूमि की तडके ॥२॥
सूर्य मंडल की बारह कला । किरणों से निकलती ज्वाला । शत वर्षों तक भूगोल का । दहन होता ॥३॥
सिंधूरवर्ण वसुंधरा । फणिवर को लगती ज्वाला । उसने भुनकर झटपट उगला । विष का वमन ॥४॥
ज्वालायें निकलती उस विष से । पाताल जलते जिससे । भस्म होते महापावक से । पाताललोक ॥५॥
वहां महाभूत खौलते । प्रलयवात बहने लगते । प्रलयपावक एकत्रित होते । चारों ओर ॥६॥
उस से ग्यारह रूद्र खौले । बारह सूर्य अति तप्त हुये । पावकमात्र एकत्रित हुये । प्रलयकाल में ॥७॥
वायु विद्युत के तड़ाके । जिससे पृथ्वी सारी तड़के । कठिनत्व सारा ही फैले । चारों ओर ॥८॥
वहा मेरू की क्या गणना । किसे संभालेगा कौन । चंद्र सूर्य तारांगन । एक बन गये ॥९॥
पृथ्वी ने कठिनता छोड दी । सारी धगधगायमान हुई । ब्रह्मांड भट्टी जल गई । एक साथ ॥१०॥
जलकर कठिनता छोड़ दी । विशेष महावृष्टि हुई । जिससे पृथ्वी विलीन हुई । जल में ॥११॥
भूजा चुना घुले जल में । वैसे पृथ्वी धीरज ना धर पाये । कठिनत्व छोड़ वेग से । मिल गई जल में ॥१२॥
शेष कूर्म वराह गये । पृथ्वी के आधार टूट गये । सत्त्व त्याग कर जल में । मिल गई ॥१३॥
वहां प्रलयमेघ उठे । भीषण गर्जना करने लगे । अखंड बिजलियां कडकडाने लगे । ध्वनि घोष ॥१४॥
पर्वताकार ओले गिरते । हवा ऐसी कि पर्वत उड़ते । उपमा न दे सकते । उस निबिड अंधकार को ॥१५॥
सिंधु नदियां एकत्रित हुये । न जाने जैसे आकाश से ही गिरे । संधि ही नहीं धाराओं को मिलने । अखंड पानी ॥१६॥
वहां मत्स्य कूर्म सर्प गिरते । पर्वत समान दिखते । गर्जना होते ही मिल जाते । जल में जल ॥१७॥
सप्त सिंधु के आवरण गये । आवरण के घेरे मुक्त हुये । जलरूप होने पर खौले । प्रलयपावक ॥१८॥
ब्रह्मांड जैसा तप्त लोह । सोखे जल का समूह । वैसे जल का विशाल अपूर्व । हुआ देखो ॥१९॥
उससे सूख गया पानी । असंभाव्य भड़का अग्नि । प्रलयवात ने उस अग्नि । पर मारा झपटा ॥२०॥
दीपक पर डाला जैसे आंचल । वैसे प्रलयपावक बुझा शीतल । आगे वायु हुआ प्रबल । असंभाव्य ॥२१॥
उदंड अवकाश थोड़ा पवन । उसमें हुआ सारा विलीन । पंचभूतों का व्याप विस्तीर्ण । समाप्त हुआ ॥२२॥
महद्भूत मूलमाया । विस्मरण से पिघले काया । रहने के लिये पदार्थ मात्रा । को जगह नहीं ॥२३॥
दृश्य कोलाहल ले गये । जड़ चंचल पिघल गये । उपरांत शाश्वत शेष बच्चे । परब्रह्म वह ॥२४॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे प्रलयनाम समास चौथा ॥४॥
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Last Updated : December 08, 2023
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