हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|रामदासकृत हिन्दी मनके श्लोक|नामरूप| ॥ समास चौथा - प्रलयनाम ॥ नामरूप ॥ समास पहला - आत्मानात्मविवेकनाम ॥ ॥ समास दूसरा - सारासारनिरूपणनाम ॥ ॥ समास तीसरा - उभारणीनिरूपणनाम ॥ ॥ समास चौथा - प्रलयनाम ॥ ॥ समास पांचवां - कहानीनिरूपणनाम ॥ ॥ समास छठवां - लघुबोधनाम ॥ ॥ समास सातवां - प्रत्ययविवरणनाम ॥ ॥ समास आठवा - कर्तानिरूपणनाम ॥ ॥ समास नववां - आत्मविवरणनाम ॥ ॥ समास दसवां - सिकवणनिरूपणनामः ॥ नामरूप - ॥ समास चौथा - प्रलयनाम ॥ इस ग्रंथराज के गर्भ में अनेक आध्यात्मिक ग्रंथों के अंतर्गत सर्वांगीण निरूपण समाया हुआ है । Tags : hindimanache shlokramdasमनाचे श्लोकरामदासहिन्दी ॥ समास चौथा - प्रलयनाम ॥ Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ पृथ्वी का होगा अत । भूतो का होगा कल्पात । ऐस समाचार साद्यत । शास्त्रों में है निरूपित ॥१॥ शत वर्षों तक अनावृष्टि जिससे जले यह सृष्टि । पृष्ठ पर पर्वत मिट्टी । भूमि की तडके ॥२॥ सूर्य मंडल की बारह कला । किरणों से निकलती ज्वाला । शत वर्षों तक भूगोल का । दहन होता ॥३॥सिंधूरवर्ण वसुंधरा । फणिवर को लगती ज्वाला । उसने भुनकर झटपट उगला । विष का वमन ॥४॥ज्वालायें निकलती उस विष से । पाताल जलते जिससे । भस्म होते महापावक से । पाताललोक ॥५॥वहां महाभूत खौलते । प्रलयवात बहने लगते । प्रलयपावक एकत्रित होते । चारों ओर ॥६॥ उस से ग्यारह रूद्र खौले । बारह सूर्य अति तप्त हुये । पावकमात्र एकत्रित हुये । प्रलयकाल में ॥७॥ वायु विद्युत के तड़ाके । जिससे पृथ्वी सारी तड़के । कठिनत्व सारा ही फैले । चारों ओर ॥८॥ वहा मेरू की क्या गणना । किसे संभालेगा कौन । चंद्र सूर्य तारांगन । एक बन गये ॥९॥ पृथ्वी ने कठिनता छोड दी । सारी धगधगायमान हुई । ब्रह्मांड भट्टी जल गई । एक साथ ॥१०॥ जलकर कठिनता छोड़ दी । विशेष महावृष्टि हुई । जिससे पृथ्वी विलीन हुई । जल में ॥११॥ भूजा चुना घुले जल में । वैसे पृथ्वी धीरज ना धर पाये । कठिनत्व छोड़ वेग से । मिल गई जल में ॥१२॥ शेष कूर्म वराह गये । पृथ्वी के आधार टूट गये । सत्त्व त्याग कर जल में । मिल गई ॥१३॥ वहां प्रलयमेघ उठे । भीषण गर्जना करने लगे । अखंड बिजलियां कडकडाने लगे । ध्वनि घोष ॥१४॥पर्वताकार ओले गिरते । हवा ऐसी कि पर्वत उड़ते । उपमा न दे सकते । उस निबिड अंधकार को ॥१५॥सिंधु नदियां एकत्रित हुये । न जाने जैसे आकाश से ही गिरे । संधि ही नहीं धाराओं को मिलने । अखंड पानी ॥१६॥ वहां मत्स्य कूर्म सर्प गिरते । पर्वत समान दिखते । गर्जना होते ही मिल जाते । जल में जल ॥१७॥सप्त सिंधु के आवरण गये । आवरण के घेरे मुक्त हुये । जलरूप होने पर खौले । प्रलयपावक ॥१८॥ब्रह्मांड जैसा तप्त लोह । सोखे जल का समूह । वैसे जल का विशाल अपूर्व । हुआ देखो ॥१९॥ उससे सूख गया पानी । असंभाव्य भड़का अग्नि । प्रलयवात ने उस अग्नि । पर मारा झपटा ॥२०॥दीपक पर डाला जैसे आंचल । वैसे प्रलयपावक बुझा शीतल । आगे वायु हुआ प्रबल । असंभाव्य ॥२१॥उदंड अवकाश थोड़ा पवन । उसमें हुआ सारा विलीन । पंचभूतों का व्याप विस्तीर्ण । समाप्त हुआ ॥२२॥महद्भूत मूलमाया । विस्मरण से पिघले काया । रहने के लिये पदार्थ मात्रा । को जगह नहीं ॥२३॥ दृश्य कोलाहल ले गये । जड़ चंचल पिघल गये । उपरांत शाश्वत शेष बच्चे । परब्रह्म वह ॥२४॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे प्रलयनाम समास चौथा ॥४॥ N/A References : N/A Last Updated : December 08, 2023 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP