दुहुँ भाँतिनकौ मैं फल पायौ ।
पाप किये ताते बिमुखन सँग, देस देस भटकायौ ।
तुच्छ कामना हित कुसंग बसि, झूठे लोभ लुभायौ ॥
कौन पुन्य अब बृंदाबन बरसाने सुबस बसायौ ।
आनँदनिधि ब्रज अनन्य-मंडली, उर लगाय अपनायौ ॥
सुनिबेहूकों दुरलभ सो सब रस बिलास दरसायौ ।
स्यामा-स्याम दास नागरकौ, कियो मनोरथ भायौ ॥