भजन - दुहुँ भाँतिनकौ मैं फल ...
हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।
दुहुँ भाँतिनकौ मैं फल पायौ ।
पाप किये ताते बिमुखन सँग, देस देस भटकायौ ।
तुच्छ कामना हित कुसंग बसि, झूठे लोभ लुभायौ ॥
कौन पुन्य अब बृंदाबन बरसाने सुबस बसायौ ।
आनँदनिधि ब्रज अनन्य-मंडली, उर लगाय अपनायौ ॥
सुनिबेहूकों दुरलभ सो सब रस बिलास दरसायौ ।
स्यामा-स्याम दास नागरकौ, कियो मनोरथ भायौ ॥
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Last Updated : December 22, 2007

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