हमारी सब ही बात सुधारी ।
कृपा करी श्रीकुंजबिहारिनि, अरु श्रीकुंजबिहारी ॥
राख्यौ अपने बृंदाबनमें, जिहि ठाँ रुप उजारी ।
नित्य केलि आनंद अखंडित, रसिक संग सुखकारी ॥
कलह कलेस न ब्यापै इहि ठाँ, ठौर बिस्व तें न्यारी ।
नागरिदासहिं जन्म जितायो, बलिहारी बलिहारी ॥