किते दिन बिन बृंदाबन खोये ।
योंही बृथा गये ते अब लौं, राजस रंग समोये ॥
छाँड़ि पुलिन फूलनकी सैया सूल सरनि सिर सोये ।
भीजे रसिक अनन्य न दरसे, बिमुखनिके मुख जोये ॥
हरि बिहारकी ठौरि रहे नहिं, अति अभाग्य बल बोये ।
कलह सराय बसाय भठयारी, माया राँड़ बिगोये ॥
इस रस ह्याँके सुख तजिकै हाँ, कबौं हँसे कबौं रोये ।
कियौ न अपनो काज, पराये भार सीसपर ढोये ॥
पायौ नहिं आनंद लेस मैं, सबै देस टकटोये ।
नागरिदास बसै कुंजनमें, जब सब बिधि सुख भोये ॥