ब्रजबासीतें हरिकी सोभा ।
बैन अधर छबि भये त्रिभंगी, सो वा ब्रजकी गोभा ॥
ब्रज बन धातु बिचित्र मनोहर, गुंज पुंज अति सोहैं ।
ब्रजमोरनिको पंख सीसपर ब्रज जुवती मन मोहैं ॥
ब्रज-रजनीकी लगति अलकपै, ब्रजद्रुम फल अरु माल ।
ब्रज गउवनके पीछे आछे, आवत मद गज चाल ॥
बीच लाल ब्रजचंद सुहाये, चहूँ ओर ब्रज गोप ।
नागरिया परमेसुरहूकी ब्रज तें बाढ़ी ओप ॥