या साँवरेसों मैं प्रीति लगाई ।
कुल-कलंकतें नाहिं डरौंगी, अब तौ करौं अपनी मन भाई ॥
बीच बजार पुकार, कहौं मैं चाहे करौ तुम कोटि बुराई ।
लाज म्रजाद मिली औरनकों मृदु मुसकनि मेरे बट आई ॥
बिनु देखे मनमोहन कौ मुख, मोहि लगत त्रिभुवन दुखदाई ।
नारायन तिनकों सब फीकौ, जिन चाखी यह रुप-मिठाई ॥
बेदरदी तोहि दरद न आवै ।
चितवनमें चित बस करि मेरौ, अब काहेकों आँख चुरावै ॥
कबसों परी द्वारपै तेरे, बिन देखे जियरा घबरावै ।
नारायन महबूब साँवरे घायल करि फिर गैल बतावै ॥