भजन - चाहै तू योग करि भृकुटीमध्...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


चाहै तू योग करि भृकुटीमध्य ध्यान धरि,

चाहै नाम रुप मिथ्या जानिकै निहार लै ।

निरगुन, निरभय, निराकार ज्योति ब्याप रही,

ऐसो तत्त्वज्ञान निज मनमें तू धार लै ॥

नारायन अपनेकौ आप ही बखान करि,

’मोतें वह भिन्न नहीं’ या बिधि पुकार लै ।

जौलौं तोहि नन्दकौ कुमार नाहिं दृष्‍टि पर्‌यौ,

तौलौं तू भलै बैठि ब्रह्मकों बिचार लै ॥

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Last Updated : December 24, 2007

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