मोपै कैसी यह मोहिनी डारी ।
चितचोर छैल गिरिधारी ॥
ग्रहकारजमें जी न लगत है, खानपान लगै खारी ।
निपट उदास रहत हौं जबते, सूरत देखि तिहारी ॥
संगकी सखी देति मोहिं धीरज, बचन कहत हितकारी ।
एक न लगत कही काहूकी कहति कहति सब हारी ॥
रही न लाज सकुच गुरुजनकी, तन मन सुरति बिसारी ।
नारायन मोहिं समुझि बावरी, हँसत सकल नर नारी ॥