रसना, राम कहत तैं थाको ।
पानी कहे कहुँ प्यास बुझति है, प्यास बुझै जदि चाखो ॥
पुरुष-नाम नारी ज्यों जानै, जानि-बूझि नहिं भाखो ।
दष्टीसे मुष्टी नहिं आवै नाम निरंजन बाको ॥
गुरु-परताप साधुकी संगति, उलटि दृष्टि जब ताको ।
'यारी' कहै सुनो भाई संतो, ब्रज बेधि कियो नाको ॥